शनिवार, 24 अगस्त 2024

हिप्नोटाइज - थ्रिलर उपन्यास ( भाग - 6 )

  



" तो तुम अपने मतलबी दोस्तों की वजह से भीतर ही भीतर टूट कर बिखर गये। " - पूरी कहानी सुनने के बाद दिव्या बोली।

" हाँ। " - अमर ने कहा।

" अब हमें चलना चाहिये अमर! "

" क्या ? यूँ  अचानक ? "

" हाँ अमर! "

" पर क्यों ? "

" बस यूँ ही। "

" ओके। "

वे कैसीनो से बाहर आये।

अमर ने कार स्टार्ट की।

दिव्या को उसके घर ड्राॅप करके उसने अपने घर की राह ली।

□  □  □





" रवि! तुम अमर को कब से जानते हो ? " - दिव्या ने पूछा।

वे दोनों इस समय काॅलेज की कैंटिन में बैठे काॅफी पी रहे थे।

" बचपन से। " - रवि ने बताया - " मैं अमर के पडौस में ही रहता हूँ। हम हमेशा से अच्छे दोस्त रहे है।  मुझे उसकी काॅलेज लाइफ के बारे में ज्यादा नहीं पता। फिर भी वह मुझसे अपनी हर बात शेयर करता था। "

" अपने काॅलेज के दोस्तों के बारे में बताया कभी उसने ? "

" हाँ। "

दिव्या की आंखें खुशी से चमक उठी।

" भारती, सनी और सचिन के बारे में भी बताया होगा फिर तो ? " - दिव्या ने पूछा।

" हाँ, ये तीनों तो उसके बेस्ट फ्रेंड थे। " - बताते हुए रवि ने पूछा  - " लेकिन तुम इन सबके बारे में क्यों पूछ रही हो ?

दिव्या हल्के से मुसकरायी।

" तुम अमर से मिली थी ? " - रवि संशयात्मक स्वर में पूछ बैठा।

दिव्या ने सहमति में सिर हिलाया।

" कुछ बताया उसने ? "

" तभी तो मुझे उसके दोस्तों के नाम मालूम हुए। "

रवि ने दिव्या को ऐसे देखा, मानो वह कोई इंसान न होकर कोई महान जादूगरनी हो।

" तुम महान हो दिव्या! " - रवि के मुंह से निकला - तुम बहुत महान हो। जो इंसान अपने अतीत के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करता, उसने तुम्हें अपने दोस्तों के नाम तक बता दिये! "

" सिर्फ नाम ही नहीं बताये। " - दिव्या बोली - " बल्कि उसने अपने नशेबाज बनने की पूरी ट्रेजडी ही समझा दी । "

" क्या ? " - रवि बुरी तरह से चौंक उठा - " तो उसने तुम्हें बता दिया कि वह नशेबाज कैसे बना ? "

" हाँ रवि! उसने मुझे सब कुछ बता दिया है। " - दिव्या ने बताया।

" तो तुम्हें क्या लगता है ? क्या वह सुधर सकता है ? " - रवि ने बैचैनी से पूछा।

" तुमने कभी किसी से प्यार किया है ? " - दिव्या ने बहुत सीरियस होकर पूछा।

" क्या ? "

" रवि! प्यार में जब किसी का दिल टूटता है ना, तो उसका जीना और मरना एक जैसा हो जाता है। ऐसे में उसके सामने सिर्फ दो रास्ते होते है या तो वह जीना छोड़ दे या फिर शराब के सहारे धीमी मौत को अपना ले और अमर ने अपने लिए दूसरा रास्ता चुन लिया। " - बोलते - बोलते दिव्या की आंखें नम हो आयी।

रवि ने संदेहपूर्ण निगाहों से दिव्या की ओर देखा।

" क्या हुआ रवि ? " - दिव्या ने पूछा।

" कुछ नहीं। " - रवि बोला - " अमर ने कभी बताया नहीं कि उसकी कोई प्रेमिका भी है। "

दिव्या मुसकरायी - " मुझे भी नहीं बताया। "

रवि फिर चौंका - " पर अभी जो तुमने कहा...."

" रवि! " - दिव्या बोली  - " यह जरूरी नहीं कि प्यार हमेशा किसी लड़की से ही किया जाये; प्यार सिर्फ एक भावना है जिसके जरिये हर इंसान अपने भीतर की एक भावनात्मक जरुरत को पूरी करता है। इसके लिए वह अलग - अलग माध्यम अपनाता है, जैसे  - माता-पिता, भाई-बहन, प्रेमिका, दोस्त। जिस माध्यम से उसकी प्रेम संबंधी भावना अधिक सशक्त रुप से संतुष्ट होती है,उससे उसका रिश्ता गहरा होता जाता है। हम ऐसी घटनायें अक्सर पढते-सुनते हैं कि किसी इंसान को अपने घर-परिवार में माता-पिता या भाई-बहन से वो प्यार नहीं मिला, जिसकी उसे दरकार थी और वही प्यार जब उसे बाहर किसी से मिला तो उसने उस अजनबी के लिये अपना घर-परिवार तक छोड़ दिया। "

" तुम्हारा संकेत उन नौजवानों की तरफ है, जो चार दिन के प्यार के लिये अपने परिवार के मान  - सम्मान की परवाह किये बगैर भागकर शादी कर लेते है ? " - रवि ने कहा।

" हाँ। " - दिव्या बोली - " और अमर के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ है। बचपन में ही मां के देहांत के बाद अमर एकाएक ही अकेला पड़ गया। पापा थे, लेकिन अपने बिजनेस की वजह से वो अमर को अधिक समय नहीं दे पाते थे और यही वजह थी कि अमर की भावनात्मक जरुरतें पूरी न हो पायी। "

रवि बुरी तरह से चकित था।

दिव्या की केस स्टडी, सोचने का तरीका, किसी भी इंसान के अंदर गहराई तक घुस जाने की प्रवृत्ति और उसका साइकोलाॅजिकल व्यू  - सब कुछ अद्भुत था।

दिव्या आगे बोली  - " अपनी भावनात्मक जरुरतें पूरी करने के लिए अमर ने एक माध्यम खोज निकाला, वह माध्यम था- उसके दोस्त। दोस्तों से उसका रिश्ता गहरा होता गया और जब उसे यह पता चला कि उसके दोस्तों की दोस्ती सिर्फ पैसों के लिये थी तो अमर बुरी तरह से टूटकर बिखर गया। "

" लेकिन, यह झूठ है। " - अचानक से रवि चीखा - " अमर के सभी दोस्तों की दोस्ती सच्ची थी, उनकी दोस्ती की वजह पैसा कभी नहीं रहा। "

दिव्या स्तब्ध रह गयी।


" क्या मतलब ? " - दिव्या ने पूछा।

" अमर के सबसे अच्छे दोस्त थे  - भारती, सनी और सचिन। " - रवि ने बताया - " ये तीनों कभी मतलबी नहीं हो सकते। "

दिव्या बोली - " लेकिन अमर ने खुद बताया कि इन दोस्तों ने जो कुछ किया, उससे अमर का जीवन तबाही की ओर बढ़ गया। "

" मैं नहीं मानता, अमर ऐसा सोच भी नहीं सकता। " - रवि ने आवेश में आकर कहा।

दिव्या ने पूछा  - " तब क्या मैं झूठ बोल रही हूँ ? "

" मुझे नहीं पता, लेकिन न तो अमर अपने दोस्तों को मतलबी कह सकता है और न ही उसके दोस्त मतलबी हो सकते हैं। " - रवि बोला  - " मैंने सोचा था कि तुम अमर को समझा सकोगी, लेकिन शायद मैं गलत था। "

" नहीं रवि! "

" नहीं। " - रवि टेबल से उठ खड़ा हुआ - " तुम बहुत बोल चुकी अमर के बारे में। "

" रवि! " - दिव्या अपने पर्स से मोबाइल निकालते हुए बोली  - " पहले ये रिकार्डिंग सुन लो, फिर जो कहना हो, कह देना। "

दिव्या ने मोबाइल की रिकार्डिंग चालू की।

रवि ध्यान से सुनने लगा।

अमर ने अपनी जो कहानी दिव्या को सुनायी थी, वो पूरी कहानी दिव्या ने अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर ली थी।

रवि जैसे जैसे सुनता गया, उसका दिल बैठता गया।

" अब बोलो रवि! " - पूरी रिकार्डिंग सुनाने के बाद दिव्या ने कहा।

" मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि अमर ये सब बोल सकता है। लेकिन आवाज़ उसी की है, तो यकीन तो करना पडेगा। पर, मैं ये भी कहूँगा कि अमर का दिमाग खराब हो गया है। "

" मैं समझी नहीं। "

" अमर झूठ बोल रहा है। सब झूठ है और मैं ये साबित भी कर सकता हूँ। "

" कैसे ? "

" सनी, सचिन और भारती से मिलकर। "

" क्या ? " - दिव्या चकित भी थी और खुश भी  - " क्या इनसे मिलना संभव है ? "

" हाँ। मेरे पास इन तीनों के मोबाइल नंबर है और अमर का नाम लेकर इन्हें कभी भी, कहीं भी बुलाया जा सकता है। "

दिव्या खुश होते हुए बोली  - " मैं नहीं मानती कि अमर कभी झूठ भी बोल सकता है और  तुम्हारा मानना है कि अमर के दोस्त मतलबी नहीं हो सकते। ऐसे में अगर अमर और उसके दोस्तों को एक ही जगह बुलाकर उन्हें सच बोलने को विवश किया जाये तो सब दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा। "

" मुझे भी ऐसा ही लगता है। " - कहने को तो रवि कह गया, लेकिन वह कशमकश में था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अमर ने ऐसी झूठी कहानी क्यों सुनायी ? और अगर अमर की कहानी सच थी तो उसके दोस्त अचानक इतना बदल कैसे गये ?

खैर, जल्द ही सच सामने आने वाला था।

□  □  □






शानदार तरीके से सजा हुआ दिव्या का घर!

रवि भारती, सचिन और सनी को फोन करके बुला चुका था।

सभी ड्राइंग रूम में सोफे और कुर्सियों पर बैठे थे।

हर किसी के चेहरे पर सिर्फ एक सवाल था - ' क्यों? '

आखिर पूरे एक साल बाद अमर ने उन्हें एकाएक ही मिलने के लिये क्यों बुलाया ?

दिव्या सबकी मन:स्थिति समझते हुए बोली - " जैसा कि आप सभी जानते हैं कि अमर ने अपने कदम एक ऐसे वन वे स्ट्रीट की ओर बढा दिये हैं, जहां से उसका लौट पाना लगभग असंभव ही है। "

" हाँ! " - भारती बोली - " हम सबको इसका बेहद अफ़सोस है और हमने कई बार अमर को समझाने की कोशिश की, लेकिन अमर तो हमारी सूरत तक देखने को तैयार नहीं और वह हमसे ऐसे बिहेव करता है जैसे हम उसके दोस्त नहीं, दुश्मन हो। "

कहते हुए भारती फूट - फूटकर रो पड़ी।

दिव्या को भारती की भावनायें सच्ची लगी। वह समझ नहीं पा रही थी कि अमर ने जो भारती के बारे में बताया वो सच था या जो वो देख रही थी वो सच था ?

" लेकिन सब ठीक हो सकता है। " - दिव्या बोली  - " अमर ने मुझे बताया है कि किस वजह से उसने गलत राह पकड़ी। "

" किस वजह से ? " -  सचिन ने पूछा।

" आप खुद ही सुन लो। " - कहते हुए दिव्या ने अपने मोबाइल की रिकार्डिंग चालू की।

जैसे जैसे रिकार्डिंग आगे बढती गयी, बारी बारी से भारती, सचिन और सनी के मुंह से बस यही शब्द निकले - " यह झूठ है, ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। "

" तब अमर ने झूठ बोला ? " - दिव्या ने पूछा।

" नहीं। " - सनी चीखा  - " अमर कभी झूठ नहीं बोल सकता। "

" यह कैसे हो सकता है ? " - दिव्या बोली - " न अमर झूठ बोल सकता है और न ही तुम लोगों की बातें झूठी लग रही है। फिर अमर के साथ जो कुछ भी हुआ, उसकी वास्तविक वजह क्या है ? यह सवाल तो एक अजीब सी पहेली बनकर रह गया है। "

भारती बोली - " हमें अमर को भी यहाँ बुला लेना चाहिए, शायद कुछ मदद मिल सके। "


                                              - क्रमश :

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