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शनिवार, 24 अगस्त 2024

हिप्नोटाइज - थ्रिलर उपन्यास ( भाग - 5 )

  


आज की रात अमर की आंखों में नींद नहीं थी।

उसने तो बस यूँ ही अपने दोस्तों का एक छोटा सा इम्तिहान लेना चाहा था।

बचपन से पढता सुनता आ रहा था कि किसी से दोस्ती करते समय उसे परख लेना चाहिए, मगर अमर ने कभी इस तरफ ध्यान नहीं दिया।

भारती की उसने हमेशा हर मुमकिन मदद की थी।

सचिन की टीम के दो खिलाड़ी ऐन वक्त पर मैच खेलने से मुकर गये, तब अमर ने ही दो नये खिलाड़ियों को तत्काल तैयार किया।

और आज उसी सचिन ने उसकी मदद करने से मना कर दिया।

लेकिन, भारती केमिस्ट्री में कमजोर है और परीक्षा भी नजदीक ही है।

सचिन अपना लकी बेट नहीं दे सकता।

उनकी अपनी जरुरतें है, उनकी अपनी मजबूरियाँ!

" मुझे अपने दोस्तों पर अब भी पूरा भरोसा है। मैं बस एक अंतिम इम्तिहान और लूंगा। फिर यह साबित हो जायेगा कि मेरे दोस्त सच्चे है। "

अमर को अपने दोस्तों पर पूरा भरोसा था।

इन छोटी- मोटी घटनाओं से अमर का भरोसा डिग सकता था, टूट नहीं सकता था।

भरोसा टूटने के लिये एक और इम्तिहान लेने की योजना तैयार की जा चुकी थी और इस बार घटना भी बडी घटने वाली थी।



□  □  □

" तुमने हमें यहाँ क्यों बुलाया अमर ? "  -  सनी ने पूछा।

काॅलेज के पास वाले पार्क में वे सब इकट्ठा हुए थे।

भारती, सचिन, सनी  और अमर!

" मुझे पापा ने घर से बाहर निकाल दिया है। " - अमर ने बताया।

" क्या ? " - सचिन बुरी तरह से चौंक उठा  - " पर, यह कैसे हो सकता है ? "

" अमर! तुम बहुत अच्छे लडके हो। तुम्हें घर से निकालने के बारे में कोई सोच भी कैसे सकता है ? " - भारती बोली।

" हुआ क्या है अमर! " - सनी ने पूछा  - " साफ  - साफ कहो। "

अमर ने बताना शुरू किया - " कल मेरे शर्ट की जेब में सिगरेट का एक पैकेट रह गया, जो सनी का ही था। पापा ने  उसे देख लिया और तुम लोग तो जानते ही हो कि पापा को किसी भी तरह के नशे से सख्त नफरत है। बस, उन्होंने यही समझा कि मैंने सिगरेट पीना शुरू कर दिया है। "

" और बस इतनी सी बात पर उन्होंने तुम्हें घर से बाहर निकाल दिया ? " - सनी ने पूछा।

व्यंग्य से मुसकराते हुए अमर बोला - " तुम्हारे लिये यह इतनी सी बात है, क्योंकि तुम सिगरेट भी पी लेते हो और शराब भी। तुम्हारा इनसे रोज वास्ता पडता है, इसीलिये तुम्हारे लिये यह आम बात है, लेकिन जो सिगरेट- शराब को छूते तक नहीं है उनके लिये यह बहुत बडी बात है। "

" तो अब ? "

" पापा ने मुझे यह कहते हुए घर से बाहर निकाल दिया है कि आज अगर मैं सिगरेट पी सकता हूँ, तो कल शराब भी पी सकता हूँ और फिर ड्रग्स भी ले सकता हूँ। " - भावुक होते हुए अमर बोला।

" अब तुम क्या करोगे अमर ? " - भारती ने पूछा।

" यही तो समझ नहीं आ रहा और इसीलिये तुम लोगों को मैंने यहाँ बुलाया है। " - अमर बोला  - " तुम सबकी हमेशा मैंने मदद की है, आज मुझे मदद की जरूरत है।"

" मैं उन्हें बता देता हूँ कि वह सिगरेट का पैकेट मेरा ही था। " - सनी ने कहा।


 

" कोई फायदा नहीं। " - अमर बोला  - " मैं  उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ। एक बार जो कह देते हैं, फिर पीछे नहीं हटते और वैसे भी अगर उन्हें पता चला कि मेरे सिगरेट पीने वाले दोस्त भी है, तब तो उन्हें पूरा यकीन हो जायेगा कि मैं भी नशेबाज ही हूँ। फिलहाल तो मेरी चिंता इस बात को लेकर है कि अब मैं रहूंगा कहाँ। "

सब एकदम से चुप हो गये।


" अमर! तुम चिंता मत करो, तुम सनी के रुम पर रह सकते हो। " - सचिन ने कहा।

" यह कैसे हो सकता है ? " - एकाएक ही सनी बोल उठा  - " मैं खुद अपने गांव से दूर यहाँ शहर में रुम किराये से लेकर रह रहा हूँ और पिछले तीन महीने से रुम का किराया भी बाकी है। ऐसे में मेरा मकान मालिक किसी और को रखने के लिये कभी राजी नहीं होगा।..... सचिन! तुम अपने घर ले जाओ न अमर को। "

" मैं जरुर करता ऐसा पर, मेरे पापा कभी इसके लिए तैयार नहीं होंगे। " - सचिन ने अपनी मजबूरी बताते हुए कहा।

अब काफी देर से चुप खडी भारती से सहा नहीं गया।

वह बोल उठी  - " तुम लोगों को जब भी किसी मदद की जरूरत होती, अमर करता था और आज जब अमर को मदद की जरूरत है तो तुम सब पीछे हट रहे हो ? लानत है ऐसे दोस्तों पर। "

" तो तुम खुद क्यों नहीं ले जाती अमर को अपने घर ? " - सचिन बोला।

" मैं जरुर लेकर जाऊंगी, पर कुछ दिनों बाद। "

" कुछ दिनों बाद क्यों ? अभी क्यों नहीं ? "

" अभी मेरी नानी घर पर आयी हुई है और वे बहुत पुराने विचारों वाली है। वो चली जाये, फिर ....."

अमर अन्दर ही अन्दर बुरी तरह से टूट चुका था।

जो कुछ वह सुन रहा था, उस पर भरोसा करना उसे नामुमकिन सा लग रहा था। लेकिन फिर भी जो कुछ वह देख रहा था, सुन रहा था, महसूस कर रहा था - वही सच था। और आज नहीं तो कल, उसे यह सच स्वीकार करना ही था।

ये उसके वही दोस्त थे, जिनको उसने अपनी जिन्दगी मान रखा था।

सब एकदम से कैसे बदल गये!

अमर का मन हुआ कि वह खूब जोर जोर से रोये , चीखे।

लेकिन, फिलहाल अमर ऐसा कुछ कर नहीं सकता था। क्योंकि अभी उसे अपने इस नाटक का अंतिम पार्ट खेलना था।

" तुम लोग परेशान मत हो। " - अमर बोला - " मैं किसी होटल में रह लूंगा। "

" तुम्हारी लाइफस्टाइल से हम वाकिफ है अमर! " - " अमर के कंधे पर हाथ रखते हुए भारती ने पूछा  - " लेकिन अब, जबकि तुम्हारे पापा ने तुम्हें घर से बाहर निकाल दिया है तो...."

" तो ? "

" तो होटल में रहना तुम्हारे लिये बहुत महंगा पड जायेगा। तुम पैसे कहाँ से लाओगे ? "

" पैसे ? " - अमर बोला  - " मेरे बैंक अकाउंट में कम से कम एक लाख रुपये तो होंगे ही। तो फिलहाल मुझे पैसों की चिंता..."

" क्या हुआ अमर ? " - भारती ने चिन्तित स्वर में पूछा।

" मुझे डर है कि पापा कहीं मेरा अकाउंट बन्द न करवा दें। अगर मैं अपना सारा पैसा किसी और अकाउंट में ट्रांसफर करवाना चाहूँ भी तो किसके अकाउंट में करवाऊं ? समझ नहीं आ रहा। " - अमर ने परेशान होते हुए कहा।

" मेरे अकाउंट में करवा दो। " - तीनों दोस्तों के मुंह से एक साथ निकला।

अमर अपने तीनों दोस्तों को और तीनों दोस्त अमर को अजीब ढंग से देखते रह गये।

" किसके अकाउंट में ? " - अमर के मुंह से फिर निकला।

" मेरे अकाउंट में। " - तीनों फिर बेशर्मी से बोले।

□  □  □

अमर ने अपनी पैप्सी खत्म की और बोला  - " बस उस दिन के बाद से न मैंने अपने उन मतलबी दोस्तों को पलटकर देखा और न ही कभी उस इंजीनियरिंग काॅलेज की ओर रुख किया।

           

                                                      - क्रमश :

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