काॅलेज से बाहर आते ही दिव्या बोली - " रवि! मुझे अमर से मिलना है। कहां होगा इस वक्त वो ? "
" इस समय तो वह अपनी फरारी में घूम रहा होगा। तुम शाम के समय उससे मिल सकती हो। "
" राॅयल कैसीनो में ? "
" हाँ वहीं। "
" अच्छा रवि! एक बात बताओ। "
" पूछो। "
" तुम अमर को क्यों नहीं समझाते कि उसे सारी गलत आदतें छोड़ देनी चाहिए। वह तुम्हारी बात जरुर मानेगा। आखिर दोस्त हो तुम उसके। "
" था, पर अब नहीं हूँ। "
" क्या मतलब ? "
" वह दोस्ती शब्द से नफरत करने लगा है, उसे लगता है कि उसके अपने ही दोस्त मतलबी है और उसका यह ' लगना ' ही उसकी बर्बादी का कारण है। "
" इट्स ओके। आज शाम मिलती हूँ राॅयल कैसीनो में उससे। "
तो दिव्या ने तय कर लिया था कि शाम को वह अमर से मिलेगी, मगर कब किसको किससे और कहां मिलना है, यह हमेशा इंसान तय नहीं करता। कभी-कभी भगवान को भी इसमें दखल देना पडता है और भगवान की इसी दखलंदाजी को ' किस्मत ' कहते है। आज कुछ ऐसा ही होने वाला था। दिव्या अमर से मुकर्रर किये गये वक्त से पहले ही मिलने वाली थी।
दिव्या ने अपनी स्कूटी संभाली और घर की ओर दौडा दी।
कुछ ही दूर जा पायी थी दिव्या कि अचानक एक कार ने आकर स्कूटी को टक्कर लगा दी। स्कूटी गिर पडी और स्कूटी के साथ दिव्या भी गिर पडी।
दिव्या का एक्सीडेंट हो चुका था। दिव्या घटनास्थल पर ही बेहोश हो गयी।
□ □ □
" मैडम! आपको इनके खिलाफ रिपोर्ट लिखवानी है ? " - काफी देर बाद जब दिव्या को होश आया तो सबसे पहले उसे अपने सामने पुलिस इंस्पेक्टर दिखाई दिया।
वह हाॅस्पिटल में थी और पुलिस इंस्पेक्टर उसका बयान लेना चाहता था।
दिव्या ने अपने दिमाग पर थोड़ा जोर दिया तो उसे याद आया कि किसी कार से उसका एक्सीडेंट हुआ था।
" कैसी रिपोर्ट ? " - दिव्या ने पूछा।
" मिस्टर अमर जडेजा की कार से आपका एक्सीडेंट हुआ है। "
" मेरा ध्यान कहीं ओर था इंस्पेक्टर और एक्सीडेंट मेरी ही गलती से हुआ। इसीलिये मुझे कोई रिपोर्ट नहीं लिखवानी। अपने एक्सीडेंट की जिम्मेदार मैं खुद हूँ। "
" लेकिन " - इंस्पेक्टर बोला - " मिस्टर अमर का कहना है कि एक्सीडेंट उनकी गलती से हुआ। "
" क्या ? " - दिव्या चौंक गयी - " नहीं। मुझे कोई रिपोर्ट नहीं लिखवानी। प्लीज, आप मुझे बेवजह परेशान मत करिये। "
" ओके " - कहने के साथ ही पुलिस वाले चले गये।
अमर चकित होकर दिव्या को देख रहा था।
दिव्या भी अमर को देखकर सोच रही थी - " तो ये है मिस्टर अमर जडेजा! अजीब बात है, जिससे मैं खुद मिलना चाह रही थी, उससे मिली भी तो इस तरह! "
" आपने झूठ क्यों बोला ? " - अमर के इस सवाल ने दिव्या को एकाएक अपने विचारों की दुनिया से यथार्थ के धरातल पर ला पटका।
" कैसा झूठ ? "
" यही कि एक्सीडेंट आपकी वजह से हुआ, जबकि गलती तो मेरी थी। मेरा ध्यान कहीं ओर था। "
" शहर में आये दिन एक्सीडेंट होते रहते है। " - दिव्या बोली - " एक्सीडेंट करने वाले, जिस इंसान का एक्सीडेंट हुआ है उसकी परवाह किये बगैर घटनास्थल से भाग जाते है, पर आपने ऐसा नहीं किया। जो होना था, वह तो हो चुका। आपने मुझे हाॅस्पिटल पहुंचाया और ऐसे अच्छे इंसान के खिलाफ मैं रिपोर्ट लिखवाती! "
अमर ने हल्के से मुसकराते हुए कहा - " मैं कोई अच्छा इंसान नहीं हूँ। "
" मुझे तो नहीं लगता। "
" आपकी स्कूटी मैंने रिपेयर करवा दी है। डाॅक्टर का कहना है कि आप जल्द ही ठीक हो जायेगी। "
अमर पूरे दिन वहीं दिव्या के साथ हाॅस्पिटल में ही रहा।
देर शाम को दिव्या ने कहा - " आपको अब घर जाना चाहिये, वहाँ सब आपका वेट कर रहे होंगे। "
" सब ? " - अमर बोला - " घर पर केवल मेरे पिताजी है। "
" ओह! "
अमर चला गया।
रात के 9.30 बजे थे।
दिव्या की अमर से पहली मीटिंग हो चुकी थी।
" अमर! .....मेरा एक्सीडेंट किया, मुझे हाॅस्पिटल लाया, मेरी स्कूटी रिपेयर करवायी और फिर भी कहता है कि वो अच्छा इंसान नहीं है? " - दिव्या का जासूसी दिमाग और भावुक ह्दय दोनों एक साथ सक्रिय हो उठे थे - " रवि ने सही कहा था, यह एक अच्छे व्यक्तित्व वाला इंसान है। सिर्फ इसलिये कि कोई इंसान नशा करता है, क्या बुरा या गलत ठहराया जा सकता है ? क्यों समाज उन लोगों को बुरा मानता है जो नशा करते है, भले ही उनमें मानवीयता कूट - कूटकर भरी हो ?....समाज की इस सोच को तो मैं बदल नहीं सकती। लेकिन, अमर की गलत आदतें छुडवा कर मैं उसे समाज के सामने एक अच्छा इंसान साबित करके रहूंगी। "
□ □ □
" यह क्या अमर! मैं कहीं सपना तो नहीं देख रहा ? " - मारे हैरत और खुशी के उछल पडे मिस्टर जडेजा - " रात-रातभर घर से गायब रहने वाला अमर आज 9.30 बजे ही घर पर आ गया है और... और उसने पी भी नहीं रखी है। "
" मुझे माफ कर दीजिये पिताजी! " - अमर की आंखों से आँसू बरसने लगे - " मुझसे एक एक्सीडेंट हो गया। वह मुझे जेल भेज सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।
" उसे ज्यादा चोट तो नहीं आयी ना बेटे! " - मिस्टर जडेजा भी जरा परेशान हो उठे।
" नहीं पिताजी! "
अमर अपने बैडरूम की ओर बढ गया, बिना लडखडाये; बिना किसी सहारे के।
बेटे में आये इस आकस्मिक परिवर्तन को देखकर मिस्टर जडेजा को जो खुशी हो रही थी,उसे सिर्फ एक बाप का दिल ही समझ सकता है।
□ □ □
रात के 9 बजे थे।
दिव्या ' टोंक फाटक ' के आसपास ही घूम रही थी।
राॅयल कैसीनो जाने के लिये अमर को इसी रास्ते से निकलना था।
दिव्या को ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पडा।
जल्दी ही उसे अमर की फरारी दिखाई दी।
" लिफ्ट प्लीज! "
फरारी रुकी।
अमर ने कार की खिडकी से बाहर देखा - " अरे दिव्या! तुम यहाँ ? "
" अमर ? " - दिव्या ने भी चौंकने का नाटक किया।
" तो हम दूसरी बार मिल रहे है। "
" हाँ "
" आओ बैठो। " - अमर ने कार का गेट खोलते हुए कहा।
दिव्या आगे की सीट पर अमर के पास ही बैठ गयी।
" तुम्हें कहाँ जाना है ? "
" राॅयल कैसीनो "
" क्या ? " - अमर बुरी तरह से चौंका - " राॅयल कैसीनो में तुम्हारा क्या काम ? "
" बहुत मुश्किल सवाल पूछ लिया अमर तुमने तो। " - हल्के से मुसकराते हुए दिव्या बोली - " बाइ दी वे, तुम कहाँ जा रहे हो ? "
" मंजिल हमारी एक ही है दिव्या! "
" तो तुम भी राॅयल कैसीनो ही जा रहे हो ? "
" हाँ।"
जल्द ही कार राॅयल कैसीनो के बाहर पार्क हुई।
कुछ ही पलों में वे दोनों राॅयल कैसीनो में थे।
कैसीनो में जाते ही दिव्या ने जुआ खेलना शुरू किया।
लगभग आधे घंटे में ही थोडे उतार-चढ़ाव के बाद उसने 5000 रुपये जीत लिये।
" आज के लिये इतना काफी है। " - कहते हुए उसने गेम बन्द कर दिया।
अमर उसे एकटक देखे जा रहा था।
वह जितना उसे समझने की कोशिश करता, उतना ही उलझता जाता था।
" तुम ये सब क्यों करती हो ? " - अमर ने पूछा - " जुआ खेलना जुर्म है। "
दिव्या हल्के से मुसकराते हुए बोली - " करना पडता है अमर! मेरी छोडो, तुमने बताया नहीं कि तुम यहाँ क्यों आते हो ? "
" बस यूँ ही। "
" बेवजह ? "
" हाँ "
" मैं नहीं मानती। "
" क्यों ? "
" क्योंकि बेवजह इस दुनिया में कभी कुछ नहीं होता। "
" लेकिन मैं तो यहाँ बेवजह आता हूँ। "
" तुम बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं। " - दिव्या बोली - " चलो थोडी ड्रींकिंग हो जाये। "
" क्या ? " - अमर बुरी तरह से चौंका - " तुम ड्रींकिंग भी करती हो ? "
" मैं कोल्ड ड्रिंक की बात कर रही थी। "
" ओह! मुझे तो कुछ और ही लगा था। "
" क्या लगा था ? "
" नहीं; कुछ नहीं। "
दिव्या ने कोल्ड ड्रिंक आॅर्डर की।
अमर ने भी आज शराब की जगह कोल्ड ड्रिंक ही पी।
ऐसे, अमर को कोई फर्क नहीं पडता था कि उसके शराब पीने पर कोई क्या सोचता है, पर आज ना जाने क्यों दिव्या के सामने शराब पीने से उसे संकोच हो रहा था।
जल्द ही कोल्ड ड्रिंक आ गयी।
" तो अमर तुमने बताया नहीं कि तुम करते क्या हो ? " - दिव्या ने पूछा - " और तुम यहाँ अकेले तो नहीं आते होंगे, तुम्हारे दोस्त कहाँ है ? "
'दोस्त' शब्द सुनते ही अमर को ना जाने क्या हो गया। यह शब्द उसकी सबसे बडी कमजोरी था और दिव्या शायद इस बात को जान गयी थी, इसीलिये उसने इस शब्द का इस्तेमाल किया था ताकि अमर भावुक हो जाये और उससे कुछ उगलवाया जा सके।
" दोस्त ? " - अमर बोला - " मेरा कोई दोस्त नहीं। इस शब्द से नफरत करता हूँ मैं। बहुत नफरत करता हूँ। "
" वजह ? "
अमर मुस्कराया - " क्या करोगी जानकर ? "
" शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूँ! "
" नहीं तुम नहीं कर सकती, कोई नहीं कर सकता। "
" अमर! दोस्ती शब्द प्यार और विश्वास का प्रतीक है। इससे नफरत करना ठीक नहीं है। कहीं ऐसा न हो कि यह नफरत तुम्हारा जीवन तबाह कर दे। "
" कितना...कितना तबाह करेगा मेरा जीवन यह शब्द ? इसी प्यार और विश्वास ने जिन्दगी बर्बाद की है मेरी। यही दोस्ती शब्द मेरी तबाही का कारण है। "
" कैसे ? "
" सुनना ही चाहती हो तो सुनो, लेकिन मेरी कहानी सुनने के बाद यकीनन तुम्हारा भी दोस्ती शब्द पर से भरोसा उठ जायेगा। "
और अमर पेप्सी का एक बडा सा घूंट भरकर अपने अतीत में खो गया।
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-क्रमश:
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