अति आत्मविश्वास !
टूटा है
हमेशा टूटा है।
अति आत्मविश्वास !
हारा है
हमेशा हारा है।
नहीं होता बर्दाश्त हमसे
इसका टूटना
इसका हारना।
स्वीकार नहीं कर पाते हम
उस सच्चाई को
दिखती है जो हमें ,
ठीक अपने सामने
होती है प्रत्यक्ष जो
हाथ पर रखे आँवले की तरह !
और ,
यही अस्वीकृति !
यही बर्दाश्त के बाहर की बात !
हो जाती है परिणत
घमंड में।
टूट जाते हैं खुद
तोड़ देते हैं औरों को भी।
पर टूटने नहीं देते
इस घमंड को ,
इस अति आत्मविश्वास को !
फिर हो जाये चाहे तबाह जिंदगियां ,
औरों की भी ,
खुद की भी !
पर ,
नहीं टूटने देते ,
इस अति आत्मविश्वास को ,
नहीं टूटने देते !