रविवार, 28 जनवरी 2018

प्रकाश की चाह

हर तरफ छाया है अंधकार,
व्याकुल है हम,
परेशान है हम,
दिखती नही रोशनी कहीं।
करते हैं प्रयास,
छटपटाते है हाथ-पैर,
पर है हालत जस की तस।
अंधकार जाता नहीं,
प्रकाश आता नहीं,
अंधकार होता अगर बाहर ही,
तो कर देते दूर इसे किसी तरह।
पर है यह तो हमारे ही भीतर,
न इसे दूर कर पा रहे हैं,
न मिटा पा रहे हैं,
साधन नहीं है इसे दूर करने का,
पास हमारे,
तब हो कैसे सिद्धि लक्ष्य की,
जानना होगा, समझना होगा।

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