मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

शनिवार, 27 जनवरी 2018

एक इंसान

देखता हूँ हमेशा से मैं,
अपने सामने के उस मकान को,
रहता है जिसमें एक अकेला वृद्ध इंसान।
सोचता हूँ,
क्यों है वो अकेला ,
क्यों नहीं रहते,
उसके घर में और कोई?
निकलता है वो जब भी घर से बाहर,
रहती है उसके चेहरे पर,
एक अजीब सी उदासी।
पर रहने नहीं देता,
वो उस उदासी को,
अधिक समय तक,
चेहरे पर अपने।
जाता है वो सीधा उस पार्क में,
खेलते हैं जहां बच्चे,
बेफिक्र होकर।
और बन जाता है वो भी,
उनके साथ का,
एक छोटा सा बच्चा।

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