मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

करु कुछ मैं भी, बनूँ कुछ मैं भी

सपना है मेरा छोटा-सा,
करु कुछ मैं भी,
बनूँ कुछ मैं भी।

इसी उम्मीद में बस,
चलता हूँ,
आगे बढता हूँ।

आती हैं बाधायें राह में,
थकता हूँ,
गिरता हूँ
और उठकर फिर से,
चलता हूँ,
आगे बढता हूँ।

कभी विश्वास डगमगाता है,
कभी मन घबराता है,
फिर भी,
थामे दामन हिम्मत का,
चलता हूँ,
आगे बढता हूँ।

सपना है मेरा छोटा-सा,
करु कुछ मैं भी,
बनूँ कुछ मैं भी।

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