“अब यूं सिर नीचे करके खड़े रहने से कुछ होने वाला नहीं है।” - दक्ष अंकित और गौरव की तरफ देखते हुए बोला - “मैं एक क्राइम रिपोर्टर हूं और मेरा काम है समाज में हो रहे अपराध की जड़ों तक पहुंचना। तुम दोनों जब मेरे घर चोरी कर आए तब से मैं यह पता करने की कोशिश कर रहा हूं कि तुम स्कूली बच्चों को भला चोरी करने की जरूरत क्यों पड़ रही है ?”
इसके बाद दक्ष अमित से बोला - “और तुम लोगों को भी ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी है जो पैसों को इतना अधिक महत्व देते हो ?”
“हम लोगों की गलती नहीं है।” - अब तक शर्म से सिर झुकाए खड़ा गौरव बोला - “गलती हमारी परवरिश की है।”
“क्या ?” - आश्चर्य चकित होकर दक्ष बोला - “क्या मतलब है तुम्हारा ?”
“हम मिडिल क्लास परिवारों के बच्चे हैं। हमारे पेरेंट्स हमें दुनिया भर की खुशियां देना चाहते हैं। उनको लगता है कि पैसों से ही खुशियां खरीदी जा सकती है और इसीलिए वे पूरी कोशिश करते हैं कि हमें वो सब मिले जो अमीर घराने के बच्चों को मिलता है। लेकिन, एक बात हमारे पेरेंट्स भूल जाते हैं कि मिडिल क्लास और हाइ क्लास के परिवारों में एक बहुत बड़ा फर्क होता है। पैसों का फर्क ! हमें बचपन से ही अमीरों की तरह पालने के चक्कर में हमारे पेरेंट्स कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान हम बच्चों को ही उठाना पड़ता है। हमें खर्च करने के लिए जितनी पॉकेटमनी चाहिए होती है, उतनी मिल नहीं पाती और अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए हमें ऐसे गलत रास्ते चुनने पड़ते हैं।”
गौरव की बात सुनकर सभी लड़के थोड़ा इमोशनल हो गए। उनके चेहरे से ही साफ पता चल रहा था कि उन सबके साथ यही समस्या थी।
“तो तुम लोग इसीलिए चोरी करते हो, क्योंकि तुम्हे अपने घर से उतना पैसा नहीं मिल पाता, जितने की तुमको पॉकेटमनी के रूप में जरूरत होती है ?”
“हां।” - सभी एक साथ बोले।
दक्ष अब समझ गया था कि असल समस्या क्या है! क्यों स्कूल कॉलेज के बच्चे अपराध की राह पर चल पड़ते हैं। कई सारी वजह हो सकती है। जैसे - ड्रग्स की लत, किसी आपराधिक गिरोह की धमकियां, मौज मस्ती। लेकिन, यहां जो समस्या थी, उसके तार इन बच्चों के पेरेंट्स से जुड़े थे।
“सच में तुम लोगों की कोई गलती नहीं है।” - बोलते हुए दक्ष ने अपने पर्स से पांच सौ रुपए के दो नोट निकालकर अमित की तरफ बढ़ाए - “अपने अखबार के माध्यम से इस समस्या को उठाऊंगा मैं, जिससे की पेरेंट्स को अपने परवरिश करने के तरीकों में सुधार करने की प्रेरणा मिल। सके।”
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दक्ष कुछ और स्कूल और कॉलेज स्टूडेंट्स से मिला। अपराध की ओर बढ़ते उनके कदमों के कई कारण थे। लेकिन जो मुख्य कारण उभरकर सामने आया, वो उनकी परवरिश से संबंधित ही था।
पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और हाइ स्टैंडर्ड परिवारों की नकल में मिडिल क्लास के बच्चे पिस रहे थे। उनके परिवारों की हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी। आमदनी की तुलना में खर्च का ग्राफ ज्यादा होने से उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई ही थी और स्टूडेंट्स को तो अपनी लाइफ स्टाइल मैनेज करने के लिए पैसों की जरूरत थी ही।
दक्ष ने अपनी रिपोर्ट तैयार करके बॉस प्रकाश आहूजा को सबमिट की।
“वाह! तुमने तो कमाल कर दिया।” - आहूजा खुश होते हुए बोला - “ये शोध तो हर मिडिल क्लास परिवार की रुचि का विषय बनेगा। हर मिडिल क्लास परिवार की आम समस्या उठाई गई है इसमें तो। और समस्या ही क्यों, समाधान भी सुझाया है तुमने। इस आर्टिकल से तो TRP बढ़नी ही है।”
“थैंक यू सर!” - बोलते हुए दक्ष बॉस के केबिन से बाहर आया।
“सच में उसे इतनी पसंद आई ये रिपोर्ट ?” - स्नेहा ने पूछा।
“और नहीं तो क्या ! बिलकुल आम टॉपिक होते हुए भी खास जो है ये।” - दक्ष बोला।
“पर तुमने काल योद्धा के बारे में क्यों नहीं बताया बॉस को ?”
“कैसे बताता ? उसके लिए तो मुझे अमित और उसके दोस्तों के नाम भी बताने पड़ते।”
“हाँ, सही है।” - स्नेहा बोली - “उड़ने वाले इंसान के बारे में एक बात तो क्लियर है।”
“वो क्या ?”
“वह कोई बुरा इंसान नहीं है। वह तो सुपरहीरो की तरह एक अच्छा इंसान है।”
“हो सकता है। लेकिन, उसकी जादुई शक्तियों का क्या रहस्य होगा ?”
“साइंस की बदौलत किया होगा उसने ऐसा।”
“मुझे नहीं लगता।”
“क्या ?”
“मुझे नहीं लगता कि वो कोई आम इंसान है।” - दक्ष बोला - “मुझे तो वह कुछ और ही लग रहा है।”
“कुछ और क्या ?”
“पता नहीं।”
•••••
“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।”
प्रातः काल 5 बजे ही इस मधुर भजन से सारा वातावरण पवित्र हो उठा था।
लेकिन कुछ लोग थे, जिनकी नींद में इस मधुर भजन ने बाधा डाल दी।
“अब ये सुबह सुबह गीत कौन गा रहा है ?” - खुद से ही कहते हुए विशाल उठा और बेडरूम से निकलकर पूजा कक्ष तक जा पहुंचा।
वहां पर जो उसने देखा, वह उसे हैरत में डाल देने के लिए काफी था।
वह अकेला नहीं था, जो वह भजन सुनकर नींद से जगा और वहां पहुंचा था। उससे पहले ही वहां पर स्नेहा पहुंच चुकी थी। वह पूजा कक्ष के बाहर खड़ी उसी आश्चर्य जनक दृश्य को देख रही थी।
विशाल आगे बढ़कर स्नेहा से कुछ बोलने ही वाला था कि उसने उसे चुप रहने का संकेत कर दिया। स्नेहा के पास ही खड़े होकर विशाल भी सामने का दृश्य देखने लगा।
श्रद्धा पूरी तन्मयता के साथ वह भजन गा रही थी।
श्रद्धा, जिसे अपनी पड़ोसन साक्षी मेहता के कहने पर स्नेहा ने मेड के रूप में रखा था। उसकी आँखें बंद थी और हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जुड़े हुए थे। वह मधुर ध्वनि और उच्च स्वर में भजन गा रही थी। भजन गाने में वह इतनी लीन थी कि स्नेहा और विशाल की उपस्थिति का उसे जरा भी आभास नहीं हुआ। वह उसी तल्लीनता से भजन गाती रही।
भजन पूरा होने पर श्रद्धा ने आँखें खोली और उठकर जिस आसन पर वह बैठी थी, उसे यथोचित स्थान पर रखकर पूजा कक्ष से बाहर आने के लिए घूमी, तब उसकी नजर स्नेहा और विशाल पर पड़ी।
“अरे, आप लोग उठ गए ? कॉफी बना देती हूँ मैं जल्दी से।” - बोलते हुए श्रद्धा किचन की तरफ बढ़ गई।
“कॉफी बनाने की जरूरत नहीं है।” - स्नेहा बोली।
किचन की ओर बढ़ चुके श्रद्धा के कदम थम गए।
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