कविताएं लिखना बहुत ही सरल होता है। बस मन होना चाहिए। नए साल पर देख रहा हूं। हर तरफ कविताएं लिखी जा रही है। सोचा, मैं भी कुछ लिख ही लूँ।
पर, मै तो ठहरा भावों का गुलाम! बस इसलिए कि नया साल है और कविता लिखनी है, कविता बनने वाली तो नहीं। एक जनवरी का दिन यूं ही निकल गया। कविता लिखने का विचार मस्तिष्क में फ्लैश होकर मिट भी गया।
कल रात से यात्रा का योग बना, जो कि अभी तक चल ही रहा है।
सुबह 7 बजे बस में बैठा इयरफोन कान में डाले गाने सुनते हुए रहस्यमयी प्रतिमा का अगला भाग लिख रहा था कि फिर मन हुआ, कविता लिखने का।
तत्काल कहानी लिखना छोड़, भावों में डूब गया और लिख डाली कविता।
कैसी है, यह तो सुधि पाठक ही जाने, पर मेरे समक्ष बड़ी बात है कि लिख दी।
( कविताएं लिखने का मेरा रिकॉर्ड साल में तीन - चार कविताओं का ही है। )
नया साल!
आ गया एक फिर से!
आ ही जाता है हर साल।
याद दिलाने को,
कि
देखो, देखो!
नहीं किया कुछ भी
पिछले साल तुमने।
आ गया हूँ एक बार फिर मैं,
भरने को एक नया उत्साह,
देने को एक नई प्रेरणा,
फूंकने को एक नया मंत्र।
हर साल की तरह तैयार हूँ मैं,
पूरी तरह से तैयार।
पर तुम..
क्या तुम हो ?
फिल्म की रील की तरह घूम जाता है,
बीते साल का हर लम्हा,
जेहन में मेरे।
भरपूर उत्साह के साथ,
बनाई गई योजनाएं,
देखे गए सपने,
चुने गए लक्ष्य!
चिढ़ाने लगते सब के सब।
शुरू हो जाता है एक आत्म संघर्ष!
धिक्कारने लगती है मेरी ही आत्मा मुझे।
“हो गया चार दिन में
उत्साह तुम्हारा धराशायी,
सपने पूरे किए नहीं,
लक्ष्य तक तुम पहुंचे नहीं।
नहीं कर सके पिछले साल कुछ भी
क्या ही कर लोगे इस साल भी!”
टूट जाता हूँ अंदर से,
हो जाता है निराश अंतर्मन।
पर,
देखता हूं जब,
नए साल का
हंसता खिलखिलाता चेहरा,
नया जोश,
नया उत्साह!
तो,
हो उठता हूँ उत्साहित मैं भी।
कर बैठता हूं दृढ़ निश्चय,
करूंगा इस साल कुछ तो।
सपना कोई तो पूरा होगा,
लक्ष्य कोई तो हासिल होगा,
उत्साह तो बनाए रखूंगा!
मंजिल तक ना भी पहुंचा,
तो,
यात्रा का आनन्द तो लूंगा ही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें