“नहीं!” - मारे आतंक और भय के अपनी पूरी ताकत लगाकर चिल्लाते हुए बोल रहा था रॉकी - “मुझे नीचे मत फेंको। मेरे पिता इंस्पेक्टर अभय माथुर सच्चे देशभक्त है। कम से कम उनके लिए तो मुझे जाने दो। अगर मैं मर गया तो उनको बहुत दुःख होगा। और मैं आगे से कोई गलत काम भी नहीं करूंगा। मैं तो बस एक कॉलेज स्टूडेंट हूं। मैं लालच में आ गया था। प्लीज, मुझे माफ कर दो।”
रॉकी को साक्षात यमराज दिखाई देने लगा था। एक ही क्षण की तो दूरी रह गई थी उसके और उसकी मौत के बीच! जिन्दा रहने के लिए वह पूरी तरह से कालयोद्धा की दया पर निर्भर था। इसीलिए जिन्दा रहने की जितनी कोशिश वो कर सकता था, कर रहा था।
और, किस्मत अच्छी थी उसकी कि उसकी कोशिश सफल भी होने वाली थी।
“तुम एक अच्छे इंसान के बिगड़ैल बेटे हो। तुममें सुधार की उम्मीद अभी बाकी है। इसीलिए तुमको जिन्दा तो छोड़ रहा हूं मैं!” - आकाश से थोड़ा नीचे आते हुए बोला कालयोद्धा - “लेकिन, तुझ जैसे अपराधी को बिलकुल स्वतंत्र तो किया नहीं जा सकता। तुम्हारा मुकाम जेल की सलाखों के पीछे ही होना चाहिए।”
कालयोद्धा रॉकी को लेकर पुलिस स्टेशन की तरफ उड़ चला।
पुलिस स्टेशन के ठीक सामने उतरकर वह चलते हुए स्टेशन के भीतर दाखिल हुआ।
संयोग से इंस्पेक्टर अभय माथुर उस रात नाइट ड्यूटी पर थे और अपनी मेज पर बैठे किसी केस की फाइल में उलझे हुए थे।
कालयोद्धा रॉकी को लेकर सीधा उनके पास जा पहुंचा।
पुलिस स्टेशन में मौजूद अन्य पुलिसकर्मी एक तो कालयोद्धा को पहचान ही नहीं पाए और ऊपर से रॉकी उसके साथ था तो ज्यादा ध्यान भी उन्होंने नहीं दिया।
लेकिन, इंस्पेक्टर अभय माथुर, जिनके पास इन दिनों दो ही महत्वपूर्ण केस थे। एक पत्थर के आदमी का और दूसरा उड़ने वाले इंसान का, उनको कालयोद्धा को पहचानने में एक पल भी नहीं लगा।
रॉकी इस उड़ने वाले इंसान के साथ क्यों था, ये अभी इंस्पेक्टर माथुर की समझ से परे था।
एकाएक ही इंस्पेक्टर अभय माथुर अपनी सीट से उठ खड़े हुए। उनका हाथ उनकी हॉल्स्टर में रखी रिवॉल्वर की ओर बढ़ा। लेकिन, अगले ही पल उनका इरादा बदल गया। उनको याद आया कि पत्थर वाले आदमी की तरह इस उड़ने वाले इंसान पर भी गोलियों का कोई असर नहीं होता। इसीलिए रिवॉल्वर से इसे डराने की सोचना भी मूर्खता है।
“तुम…तुम तो उड़ने वाले इंसान हो ना !” - इंस्पेक्टर ने अचानक पूछा।
“हां।”
“तुम कैसे उड़ते हो ? हो.. हो कौन तुम ?” - हड़बड़ाहट में बोले इंस्पेक्टर माथुर - “तुम…तुम एक अपराधी हो।”
“मै कौन हूँ” - कालयोद्धा अपनी गंभीर आवाज में बोला - “ये जानने की तुमको कोई जरूरत नहीं है। इतना जानना तुम्हारे लिए काफी होगा कि मैं कोई अपराधी नहीं हूं।”
“तुम कैसे कह सकते हो कि तुम अपराधी नहीं हो!” - आवेशयुक्त स्वर में बोले इंस्पेक्टर माथुर - “जबकि तुमने दो आदमियों को बड़ी ही बेरहमी से आकाश से नीचे फेंककर अधमरा कर दिया! लगभग मार ही डाला! जानते हो वे दोनों इस समय हॉस्पिटल में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं!”
“कुछ नहीं होगा उनको। और वे कोई आम इंसान नहीं, मानवता के दुश्मन बैंक लुटेरे थे। जो सजा मैने उनको दी है, वो तो बहुत कम थी। ऐसे लोगों को तो मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।”
“चाहे जो हो, लेकिन तुम एक अपराधी हो और अब मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं।”
कालयोद्धा के चेहरे पर व्यंग्यपूर्ण मुस्कुराहट उभरी - “कर लेना। पहले अपने इस अपराधी को संभालो, जो प्रताप म्यूजियम से प्रतिमाएं चुराने की कोशिश कर रहा था। उन प्रतिमाओं को यह विदेशों में काफी अच्छे दामों में बेचने का ख्वाहिशमंद था।”
“क्या!” - कालयोद्धा की बातें सुनकर इंस्पेक्टर अभय माथुर के पैरों तले जमीन खिसक गई - “मेरा बेटा रॉकी!.. और अंतर्राष्ट्रीय स्मगलर!”
“हां। अपराध को दंडित करने और खत्म करने का विचार अच्छा है। लेकिन, शुरुआत घर से होनी चाहिए।” - बोलते हुए कालयोद्धा वहां से जाने के लिए मुड़ा।
“औरों के अपराध गिनाकर खुद पर से अपराधी होने का तमगा तुम हटा नहीं सकते।” - कहने के साथ ही इंस्पेक्टर माथुर ने अपने हॉल्स्टर से रिवॉल्वर निकाल ली।
कुछ पल पहले का समझदार इंस्पेक्टर अपने बेटे के इमोशंस में बहकर भूल चुका था कि कालयोद्धा पर रिवॉल्वर की गोलियों का कोई असर नहीं होने वाला।
उसने पुलिस स्टेशन से बाहर की ओर जाने के लिए अपने कदम उठा चुके कालयोद्धा की तरफ रिवॉल्वर तानी और अपने मातहत पुलिसकर्मियों को आदेश देते हुए चिल्लाया - “गिरफ्तार कर लो इसको!”
वहां उपस्थित सभी पुलिसकर्मी अब तक जान चुके थे कि रॉकी के साथ आया यह रहस्यमयी नकाबपोश उड़ने वाला इंसान ही है।
तुरंत ही सारे पुलिसकर्मी कालयोद्धा को घेरकर खड़े हो गए। वे संख्या में करीब 25 थे। उनमें से अधिकतर के पास राइफलें थी। उन सबके बीच अपना सिर नीचे को झुकाए कालयोद्धा ऐसे खड़ा था, जैसे वह कोई बहुत बड़ा अपराधी हो। एक ऐसा अपराधी, जो मारे आत्मग्लानि के शर्म से अपने ही भीतर गड़ा जा रहा हो। लेकिन, उसके चेहरे पर एक रहस्यपूर्ण मुस्कुराहट थी।
“इसे पकड़कर लॉक अप में डाल दो।” - अपनी सीट से उठकर कालयोद्धा की तरफ बढ़ते हुए इंस्पेक्टर माथुर ने कहा।
इससे पहले कि वहां उपस्थित पुलिसकर्मी कालयोद्धा को लॉक अप में बंद करने के लिए एक कदम भी बढ़ा पाते, अचानक तेजी से हवाएं चलने लगी।
हवाएं इतनी तेजी से चली कि जल्दी ही उन्होंने तूफान का रूप धारण कर लिया। तूफान भी इतना तेज कि पुलिस स्टेशन के मैनगेट और खिड़कियों के दरवाजे तेजी से खुलने और बंद होने लगे।
“य…ये अचानक आंधी तूफान क्यों शुरू हो गया ?” - एक पुलिसकर्मी थोड़ा डरते हुए बोला।
“मौसम है, बदलते रहता है।” - इंस्पेक्टर माथुर चिल्लाया - “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आगे बढ़ो और इसको लॉक अप में डालो।”
इंस्पेक्टर के आदेश पर उस पुलिसकर्मी ने डर से कांपते हुए अपना एक पांव आगे बढ़ाया ही था कि अचानक सारे के सारे पुलिसकर्मी पीछे की ओर ऐसे उछल पड़े, जैसे कि किसी अदृश्य शक्ति ने उन्हें आगे से धक्का दे दिया हो।
सभी पुलिसकर्मी पुलिस स्टेशन की इमारत की दीवारों से जा टकराए। जबकि कालयोद्धा अपनी उसी मुद्रा में सिर नीचा किए मुस्कुराता हुआ खड़ा था।
उस दृश्य को देखकर इंस्पेक्टर अभय माथुर भी खौफ में आ गए और अपनी रिवॉल्वर से कालयोद्धा पर लगातार फायरिंग करने लगे। छह की छह गोलियां उन्होंने कालयोद्धा की पीठ में उतार दी।
“मै तुमको आदर्शवादी पुलिस इंस्पेक्टर समझता था। लेकिन, पीठ पर वार करके तुमने तो अपनी कायरता साबित कर दी। मेरी नजरों से तुम उतर चुके हो इंस्पेक्टर!” - गंभीर आवाज में बोलने के साथ ही कालयोद्धा पुलिस स्टेशन से बाहर चला गया।
जाहिर सी बात थी कि गोलियों का उस पर रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ा था।
3 Comments
आपका हार्दिक आभार।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद।
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