मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

रविवार, 24 नवंबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा Ch - 22 श्रेया ने की प्रिंसिपल से शिकायत

 

काफी देर ढूँढने के बाद श्रेया उसे प्रिंसिपल रूम की ओर जाती दिखी। श्रेया ने इस समय पर्पल कलर का टी शर्ट और ब्राउन कलर की जींस पहन रखी थी। वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। 

“ श्रेया! “ - दूर से ही आवाज देते हुए यश एक तरह से चिल्ला ही उठा। 

श्रेया ने पीछे घूमकर देखा। 

तेज कदमों से चलते हुए यश श्रेया की ओर बढ़ रहा था। इधर यश का पीछा करते हुए पवन भी वहीं आ पहुँचा था और कुछ फासले से वह इन दोनों को ही देख रहा था। 

यश जानता तो था कि वह क्या करने जा रहा है, लेकिन उसका अंजाम क्या हो सकता था, इसका उसे जरा भी अंदाजा नहीं था। वैसे भी अंजाम की परवाह उसे थी ही कहाँ! 

वह तो श्रेया के प्यार में अंधा हो चुका था और उस समय उसके दिमाग में सिर्फ दो ही चीजें घूम रही थी। एक था, वह लेटर जो उसे श्रेया को देना था और दूसरा वह चाकू, जो कि श्रेया के लेटर कबूल न करने की हालत में, वह श्रेया को देने वाला था। 

श्रेया की तरफ बढ़ते हुए, उसे लेटर देने के बारे में सोचने से यश के दिल की धड़कन सामान्य से कई गुना ज्यादा तेज हो चुकी थी। 

जब वह श्रेया के पास पहुँचा, तो उस वक्त श्रेया का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था। लेकिन, प्यार में अंधे हो चुके यश को श्रेया का ग़ुस्सा भी दिखाई नहीं दिया। उस पर तो बस उसको लव लेटर देने की धुन सवार थी। 

“ क्या बात है ? “ - अपने गुस्से पर काबू पाने की भरपूर कोशिश करते हुए श्रेया ने पूछा। 

जवाब में यश कुछ बोला नहीं। बस उसके सामने ही घुटनों के बल बैठते हुए उसने अपने हाथ में थमे लेटर को श्रेया की तरफ बढ़ाया। 

“ अब बोलोगे भी, क्या है ये ? “ - आशंकित स्वर में श्रेया बोली। 

“ दिल निकाल के रख दिया है इसमें मैंने अपना और ये सिर्फ तुम्हारे लिए है। आई लव यू श्रेया! “ - बेखौफ और बेधड़क बोलता चला गया यश। 

“ लाओ, तुम भी लाओ। “ - गुस्से में बोलते हुए श्रेया ने यश के हाथ से वो लेटर झपटते हुए कहा - “ अक्ल ठिकाने ना लगा दी तुम आशिकों की, तो श्रेया नाम नहीं मेरा। “

यश को इस बात की खुशी तो थी कि श्रेया ने उसके लव लेटर की बेकद्री नहीं की थी, लेटर ले लिया था और श्रेया को उसे चाकू देने की नौबत नहीं आई थी। लेकिन उसकी समझ में ये नहीं आ रहा था कि उसने ऐसा क्यों बोला! 

“ तुमने ये लेटर ले लिया। “ - भावुक स्वर में यश बोला - “ इससे ज्यादा मुझे और कुछ नहीं चाहिए। इस लेटर का जवाब पाने की भी मुझे कोई जल्दी नहीं है। तुम आराम से अपना जवाब दे सकती हो। “

“ आराम से क्यों, अभी देती हूँ। बस तुम रुको यहीं। “ - गुस्से में बोलते हुए श्रेया तेजी से चलते हुए प्रिंसिपल रूम की तरफ बढ़ गई। 

श्रेया के वहाँ से जाते ही अब तक एक तरफ छिपकर तमाशा देख रहा पवन यश के पास आया। 

यश, जो कि श्रेया को प्रपोज़ करने के लिए घुटनों के बल बैठा हुआ था, अब खड़ा हो चुका था। 

“ दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा! “ - पवन जोर से चिल्लाया - “ तुम तो अब गए काम से! “

“ अरे, पवन! तुम यहीं हो! “ - विजेता की सी मुस्कान होंठो पर लाते हुए यश बोला - “ देखा तुमने, लेटर दे दिया मैंने उसे। “

“ देखा। मैंने सब देखा। “ - पवन बोला - “ लेकिन, लगता है कि तुमने नहीं देखा। मैं तुम्हारे पीछे पीछे आया था, ये सोचकर कि तुम कहीं सच में श्रेया को लेटर दे ही ना दो। लेकिन तुम तक पहुँचने में मुझे देर हो गई। तुम तो श्रेया को लेटर दे भी चुके! पता नहीं, तुमने ध्यान दिया या नहीं। श्रेया भयंकर गुस्से में थी। तुम्हारी अब खैर नहीं। “

“ प्यार करना , अंगारों पर चलने की तरह है और मैं चलना शुरू कर चुका हूँ। “ - अपनी ही धुन मे कहता चला जा रहा था यश - “ तकलीफ तो होगी ही, पर अपने प्यार के लिए मैं दहकते अंगारों पर भी चलूँगा। “

“ तुम पागल हो चुके हो। श्रेया के प्यार में। “ - बड़बड़ाते हुए पवन वहाँ से चला गया - “ बिल्कुल पागल! “

पीछे यश अकेला रह गया। वह तो वहाँ से हिल भी नहीं सकता था। श्रेया जवाब के साथ वापस जो आने वाली थी। 

इधर श्रेया प्रिंसिपल रूम में दाखिल हो चुकी थी। बिना परमिशन के, यूँ ही तेज गति से भीतर आती श्रेया को देखकर प्रिंसिपल नरेश शुक्ला की भौंहें तनी और वे कड़क आवाज में बोले - “ ये क्या श्रेया! तुममे इतना भी शिष्टाचार नहीं कि प्रिंसिपल के रूम में प्रवेश करने से पहले परमिशन लेनी चाहिए ? “

“ शिष्टाचार की बात तो आप करिये ही मत। “ - आवेशित स्वर में श्रेया बोली - “ आपके इस कॉलेज में ऐसे ऐसे स्टूडेंट पढ़ते हैं, जिनमें इतना शिष्टाचार नहीं कि एक लड़की से कैसे पेश आया जाता है! “

श्रेया को गुस्से में देखकर प्रिंसिपल समझ गए कि वह खुद पर कंट्रोल नहीं रख पा रही है। 

“ क्या बात है ! तुम इतनी गुस्से में क्यों हो ? “ - मृदुल स्वर में प्रिंसिपल शुक्ला बोले - “ आराम से बैठकर बताओ, हुआ क्या है! “

श्रेया प्रिंसिपल की मेज के सामने ही रखी विजिटर्स चेयर में से एक पर बैठी और हाथ में थमे दो पेपर प्रिंसिपल की ओर बढ़ाते हुए बोली - “ ये देखिये, आपके स्टूडेंट्स की हरकत! “

दोनों पेपर फोल्ड किये हुए थे। 

सस्पेंस भरी हालत में प्रिंसिपल ने उनको खोलकर देखा, पढ़ा और पढ़ते हुए उनके अधरों पर मुस्कान उभर आई। 

प्रिंसिपल को मुस्कुराते हुए देखकर श्रेया का गुस्सा और भी बढ़ गया। 

“ मुस्कुरा क्यों रहे हो आप ? “ - गुस्से में श्रेया बोली - “ कोई जोक लिखा है क्या इनमें ? “

दोनों ही पेपर्स को पूरा पढ़कर डेस्क पर रखते हुए प्रिंसिपल मुस्कुराते हुए बोले - “ बहुत ही सामान्य सी बात है ये तो। इसमें इतना गुस्सा करने की भला क्या जरूरत है! “

“ सामान्य सी बात! “ - चकित स्वर में श्रेया बोली। 

“ और नहीं तो क्या! ये सब तो कॉलेज में चलते ही रहता है। इस तरह के मामले बेहद निजी हुआ करते हैं। मेरी सलाह है कि ये सब तुमको अपने ही स्तर पर निपटा लेना चाहिए। इन मासूम लड़को ने लेटर्स के जरिये तुम तक अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा है। तुम्हें स्वीकार नहीं है तो तुम इनको मना कर सकती हो। “

“ अच्छा! “

“ हाँ, अगर कोई बेवजह तुम्हें परेशान करता है तो वह विशेष बात होगी और मैं उसके खिलाफ सख्त एक्शन लूँगा। “



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