“ यह गड़बड़ कैसे हो गई ? “ - पत्थर का वह आदमी जैसे खुद से ही बात कर रहा था - “ मुझे मिली सूचना के अनुसार, जिस प्रतिमा को विदीर्ण करके मुझे यहाँ प्रकट होना था, उसे किसी एकांत और निर्जन स्थान पर होना चाहिये था। लेकिन यह तो ऐसे स्थान पर रखी हुई थी, जो न तो एकांत में था और न ही निर्जन!... इसका एक ही अर्थ हो सकता है, किसी ने इस प्रतिमा को इसके मूल स्थान से हटाया है। किसने किया ये दुःसाहस! वह जो कोई भी है, सजा पाने का हकदार है। क्योंकि उसकी वजह से ही मुझे इतने सारे लोगों के बीच प्रकट होना पड़ा है और इस तरह इतने लोगों के द्वारा मुझे देखा जाना मेरे खुफिया मिशन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। “
पत्थर के उस आदमी के डर से कुछ ही पलों में लगभग सारा म्युजियम ही खाली हो गया।
बिना किसी तोड़ फोड़ के पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान में चले जाना चाहता था। वह धीरे धीरे चलते हुए म्युजियम के मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था।
ठीक इसी समय म्युजियम के बाहर पुलिस की 6 - 7 गाड़ियां आकर रुकी। एकाएक ही म्युजियम पर टूट पड़ी इस मुसीबत को देखकर किसी कर्मचारी ने पुलिस को फोन कर दिया था।
पुलिस जीप में से सबसे पहले इंस्पेक्टर अभय माथुर बाहर निकले, जो कि आर्ट्स कॉलेज के स्टूडेंट राकेश माथुर उर्फ रॉकी के पिता थे और उड़ने वाले इंसान के केस पर भी काम कर रहे थे।
पत्थर के आदमी जैसे विचित्र प्राणी के बारे में पता चलने के बाद पूरी की पूरी पुलिस फोर्स ही उससे निपटने के लिए भेजी गई थी। ये संख्या में करीब 40 थे।
पुलिस की गाड़ियों से सशस्त्र वर्दीधारी पुलिसकर्मी बाहर आये और तेजी से दौड़कर म्युजियम में दाखिल हो गए।
यह वही पल था, जबकि पत्थर का वह आदमी किसी एकांत और निर्जन स्थान की तलाश में म्युजियम से बाहर निकलने के लिए मुख्य प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहा था।
एंट्री गेट पर ही पुलिस और उस विचित्र प्राणी का आमना सामना हो गया।
ब्राउन कलर के पत्थर के छोटे छोटे टुकड़ों से जुड़कर बने उस अजीब प्राणी को देखकर एक पल के लिए तो पुलिस वाले ठिठक कर रह गए। लेकिन अगले ही पल एक दृढ़ निश्चय के साथ उन्होंने एक साथ ही अपनी राईफलो का रुख पत्थर के उस विचित्र प्राणी की ओर किया और लगातार फायर करने लगे। फायरिंग जो एक बार शुरू हुई तो तब तक नहीं रुकी, जब तक कि उनकी बुलेट खत्म नहीं हो गई।
गोलियां दागने से उठे धुऐं ने उस प्राणी को पूरी तरह से ढँक लिया था। पुलिसकर्मियों को पूरा भरोसा था कि जब धुआँ छँटेगा तो उन्हें वह प्राणी फर्श पर गिरा पड़ा मिलेगा। इसी उम्मीद में कुछ देर वे धुआँ छँटने का इंतजार करते रहे और कुछ समय बाद जब धुआँ छँटा तो यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा नहीं रही कि पत्थर का वह अजीब प्राणी अपने पैरों पर सही सलामत खड़ा था।
“ यह कैसे हो सकता है!” - एक पुलिसकर्मी बोला।
“ असम्भव है ये तो! “ - दूसरा बोला।
“ नकली गोलियां तो नहीं चलाई थी ना हमने ? “ - एक दूसरा पुलिसकर्मी बोला।
“ गोलियां नकली नहीं हो सकती। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले - “ यह प्राणी सच में पत्थर का ही बना हुआ है! “
“ लेकिन, सर! फायरिंग से पत्थर भी तो टूट जाते हैं। यहाँ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ। “ - किसी अन्य पुलिसकर्मी ने कहा - “ अब हम क्या करें सर ? “
इससे पहले कि इंस्पेक्टर अभय कोई जवाब दे पाते, पत्थर का वह आदमी अपने कदम पीछे हटाने लगा।
“ यह तो पीछे हट रहा है। लगता है हमसे डर गया। “ - कोई पुलिस वाला बोला।
जवाब में इंस्पेक्टर माथुर ने गुस्से से उसकी ओर देखा, तो सहमकर वह दूसरी तरफ देखने लगा।
उधर पत्थर का वह आदमी मुड़कर वापस म्युजियम के अंदर जाने लगा। पुलिस कर्मी भी धीरे धीरे उसके पीछे चलने लगे। कुछ आगे जाने पर एक तरफ ऊपर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। वह सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपरी मंजिल पर जाने लगा।
“ यह ऊपर क्यों जा रहा है ? आखिर करना क्या चाहता है यह ? “ - एक पुलिस वाले ने कहा।
“ पता नहीं। बस चुपचाप इसके पीछे चलते रहो। “ - बोलते हुए इंस्पेक्टर माथुर मारे सस्पेंस के उसके पीछे चलते रहे।
उनका अनुमान था कि वह प्राणी जहाँ से आया था, वहीं जा रहा था।
पत्थर वाले आदमी के पीछे चलते हुए वे सब ऊपरी मंजिल पर पहुँचें। लेकिन, वह अभी भी रुका नहीं। वह दूसरी मंजिल की सीढियाँ भी चढ़ने लगा।
सीढियाँ चढ़ते हुए वह टेरिस पर पहुँचा। टेरिस पर चलते हुए उसने चारदिवारी पर खड़े होकर नीचे छलाँग लगा दी।
किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा करेगा!
पीछा कर रहे सारे पुलिस कर्मियों ने चार दिवारी से नीचे की ओर देखा। छलाँग लगाकर वह प्राणी बड़े आराम से नीचे जमीन पर अपने पैरों के बल पर खड़ा था।
फिर अपने कदम आगे की ओर बढ़ाते हुए वह वहाँ से जाने लगा।
टेरिस से छलाँग लगाने के बाद जमीन पर जिस जगह वह खड़ा हुआ था, उस जगह पर उसके पैरों के दबाव से दो बड़े गड्ढे हो गए थे और जमीन में थोड़ा कंपन भी हुआ था, जैसे कोई भूकंप आया हो।
“ यह तो कोई दानव लगता है सर! “ - एक पुलिस कर्मी बोला।
“ लेकिन यह बिना कोई तोड़ फोड़ किये, बिना किसी को कोई नुकसान पहुंचाए चला कैसे गया! “ - कोई आश्चर्य प्रकट करता हुआ बोला।
“ हाँ और इसके यहाँ आने का मकसद क्या था ? “ - कोई दूसरा पुलिस कर्मी बोला।
“ अब तो लगता है यह जंगल की तरफ जा रहा है! “ - कोई तीसरा पुलिस वाला बोला।
“ यह भी उस उड़ने वाले इंसान की तरह हमारे एक पहेली बन गया है। “ - इंस्पेक्टर माथुर बोले - “ इसने तो किसी को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाया। फिर महज इसके विशालकाय शरीर को देखकर हम इसे राक्षस कैसे कह दें ! “
“ लेकिन, यह आया कहाँ से होगा ? “ - किसी ने सवाल किया।
“ इसका जवाब तो म्युजियम के कर्मचारी ही दे सकते हैं। “ - इंस्पेक्टर अभय माथुर बोले।
इसके बाद वे सभी नीचे की ओर चले गए। ग्राउंड फ्लोर पर, जहाँ म्युजियम के हाॅल में वस्तुओं की प्रदर्शनी लगी थी, वहाँ पहुंचकर वे म्युजियम के कर्मचारियों को तलाश करने लगे।
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