मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

रहस्यमयी प्रतिमा ( भाग - 2 ) - कल रात की घटना


 कंप्यूटर के की बोर्ड पर उसकी नाजुक अंगुलियाँ तेजी से शिरकत कर रही थी। टाईपिस्ट कम रिपोर्टर की इस जॉब में पैसा ज्यादा नहीं था, लेकिन एडवेंचर बहुत था और इसी एडवेंचर के लिए उसने करियर के रूप में पत्रकारिता को चुना था।

हर किसी की बेवजह मदद करने की अपनी आदत की वजह से भी उसने इस करियर को चुना था।

डेली न्यूज़ एजेंसी के दफ्तर में इस समय करीब 20 कर्मचारी कार्य कर रहे थे। इन सभी के ओपन कैबिन थे, जिनमें एक कंप्यूटर, प्रिंटर, दो बड़ी सी डेस्क और 3 - 4 चेयर रखी हुई थी।

स्नेहा उन्हीं में से एक थी।

यह दफ्तर शौर्य अपार्टमेंट की सातवीं मंजिल पर था।

“ हैलो, स्नेहा! “ - इस आवाज को सुनकर उसने अपनी नजरें कंप्यूटर स्क्रीन से हटाई और खुद को सम्बोधित करने वाले शख्स की ओर उसकी तवज्जो गई।

“ हाय दक्ष! हाऊ आर यू ? “ - मुस्कुराते हुए वह बोली।

“ आई एम फ़ाईन। तुम सुनाओ। क्या चल रहा है ? “ - एक चेयर पर बैठते हुए दक्ष बोला।

“ खास कुछ नहीं। बस वही हर रोज वाला डेली वर्क। “ - स्नेहा बोली - “ वैसे, आज काफी लेट आए तुम ? “

“ हाँ। आज उठा ही देर से था, इसीलिए पूरे एक घंटा देरी से आया हूँ। “

“ देर से उठे ?... क्यों ? “

“ इस क्यों का जवाब थोड़ा लंबा और सस्पेंस भरा है। “

“ लंबा तो ठीक है, पर सस्पेंस भरा ? “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली।

“ हाँ और इसीलिए मैं सोच रहा था कि क्यों न बाहर कैंटीन में चलकर कॉफी पीते हुए तुम्हारे इस सवाल का जवाब दिया जाये। “

“ क्या ? “ - स्नेहा को फिर से चोंकना पड़ गया - “ क्या बात कर रहे हो दक्ष!... तुम जानते हो ना कि अगर बॉस राउंड पर आया और उसने हमें अपने कैबिन से गायब पाया तो… “

… तो क्या हो जायेगा ? “ - स्नेहा की बात पूरी होने से पहले ही दक्ष बोल उठा - “ वो हमें जॉब से डिसमिस कर देगा ? “

“ इतनी तो उसकी हिम्मत हो नहीं सकती। “ - स्नेहा बोली - “ लेकिन ये ठीक नहीं होगा। “

“ टेंशन मत लो। हम जल्दी वापस आ जायेंगे। “ - दक्ष चेयर से उठते हुए बोला - “ चलो भी अब। “

“ मतलब, तुम घर से कॉफी पीकर नहीं आए हो। “

“ सही कहा। “

“ क्यों ? “

“ बताया तो, लेट उठा था तो जल्दी से तैयार होकर दौड़ते - भागते यहाँ आया हूँ। “

“ ओके। “ - बोलते हुए स्नेहा ने ‘के’ को थोड़ा लंबा खींचा।

यह उसकी रेगुलर हैबिट थी।

वे धीमी गति से चलते हुए ऑफिस से बाहर निकले। फिर कुछ देर कॉरिडोर में चलते हुए लिफ्ट तक पहुँचे।

दक्ष ने लिफ्ट का बटन दबाया।

कुछ देर बाद लिफ्ट सातवें फ्लोर पर रुकी। उसका गेट खुला।

स्नेहा और दक्ष लिफ्ट में प्रविष्ट हुए।

दक्ष ने लिफ्ट का G वाला बटन दबाया।

अब लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर की ओर बढ़ने लगी।

ग्राउंड फ्लोर पर लिफ्ट से निकलकर वे अपार्टमेंट से बाहर निकले। वॉकिंग डिस्टेंस पर ही पुरोहित रेस्टोरेंट था।

वे वहीं पहुंचे।

ग्लास के बड़े से डोर को धकेलते हुए वे रेस्टोरेंट में दाखिल हुए। लोगों की भीड़ से भरे रेस्टोरेंट में बड़ी मुश्किल से उन्हें कॉर्नर की एक टेबल खाली दिखी। उसी टेबल की ओर वे बढ़े।

“ तो क्या हुआ ऐसा, जिसकी वजह से आज तुम देरी से उठे ? “ - चेयर पर बैठते ही स्नेहा ने पूछा।

“ बताता हूँ। पहले कॉफी तो ऑर्डर कर लूँ। “ - कहते हुए दक्ष ने हाथ के संकेत से वेटर को बुलाया।

दो कॉफी का ऑर्डर करने के बाद दक्ष बड़े ही नाटकीय ढंग से बोला - “ कल रात जो हुआ, उसकी मैंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। “

“ अच्छा! “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ मैं बड़ी उत्सुक हूँ जानने के लिए, आखिर हुआ क्या ! “

“ तुम जानती हो ना कि मैं हमेशा अपने पास एक लाइसेंसी रिवॉल्वर रखता हूँ। “

“ हाँ। पता है मुझे। तीन साल पहले डेली न्यूज़ को जॉइन करते ही सबसे पहला काम तुमने एक लाइसेंसी रिवॉल्वर खरीदने का ही किया था। “

“ और तुमने कहा था कि हमे कभी इसकी जरूरत नहीं पड़ने वाली, यह फालतू का खर्च है जो मैंने किया। “

“ हाँ ऐसा ही कहा था और क्या गलत कहा था। आज तक हमें उसका इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ी और आगे भी मुझे तो ऐसी कोई संभावना नहीं लगती। “

“ मानता हूँ। “ - सहमत होते हुए दक्ष बोला - “ लेकिन, कल रात वह मेरे बड़ा काम आई। “

“ क्या ? “ - स्नेहा हैरत भरे स्वर में बोली - “ तुमने…तुमने रिवॉल्वर का इस्तेमाल किया ?... किस पर ? “

“ दो थे वो। “ - मुस्कुराते हुए दक्ष बोला - “ उनको जरा भी उम्मीद नहीं थी कि उन पर यूँ अचानक हमला हो जायेगा। “

“ अरे, हुआ क्या! जरा डिटेल में बताओ ना। “ - स्नेहा पूरी बात जानने के लिए उत्सुक थी।

इसी समय कॉफी आ गई।

वेटर ने कॉफी के दो बड़े कप मेज पर रखे और चला गया।

“ रात को करीब दो बजे वे मेरे घर के भीतर घुसे। “ - दक्ष ने कॉफी का कप उठाते हुए बताना शुरू किया - “ उनके चेहरे काले मास्क के पीछे छिपे थे और हाथों में चाकू थे। उनका हुलिया देखते ही मुझे खतरे का आभास हुआ और मैंने अपनी रिवॉल्वर से एक - एक फायर उनके घुटने पर किया। “

“ क्या ? “ - कॉफी सिप करते हुए स्नेहा ने आश्चर्य से कहा - “ क्या बेकार की फिल्मी कहानी सुना रहे हो! ऐसा भी भला कहीं होता है! तुम तो ऐसे बोल रहे हो, जैसे उनके भीतर दाखिल होते समय रिवॉल्वर तुम्हारे हाथ में ही थी। “

“ थी। “

“ क्या ? “

“ रिवॉल्वर मेरे हाथ में ही थी। “

“ आधी रात के समय! … तुम रिवॉल्वर साथ लेकर ही सोते हो क्या! “

“ नहीं। रिवॉल्वर साथ लेकर तो नहीं सोता। लेकिन, संयोग की बात कि उस वक्त रिवॉल्वर मेरे हाथ में ही थी और ऐसा इसलिए था, क्योंकि अभी जो मैंने तुमको सुनाई, वो तो कल रात की दूसरी घटना थी। पहली घटना तो तुमने अभी सुनी ही नहीं। “ - मुस्कुराते हुए दक्ष बोला।

“ दूसरी घटना!... क्या मतलब है तुम्हारा ? कल रात क्या तुम्हारे घर घटनाओ का सैलाब आया था ? “

“ ऐसा ही कुछ समझ लो। “

“ तुम सीधे सीधे पूरी बात नहीं बता सकते ना।.. छोटी छोटी बातों को भी सस्पेंस क्रिएट करते हुए किश्तों में बताने की घटिया आदत जाने वाली नहीं तुम्हारी। “

“ अरे! तुम तो नाराज हो गयी। अच्छा ठीक है। मैं अब शुरू से बताता हूँ कि कल रात मेरे साथ क्या क्या हुआ था। “

“ हाँ और पूरी डिटेल में। ऑफिस से निकलने के बाद से ही शुरू करो। “

“ ठीक है। “

- शेष अगले भाग में


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