" क्या ? " - सभी बुरी तरह से चौंक उठे।
" यह आप क्या कह रहे हैं डाॅक्टर ? " - दिव्या ने हैरानी से पूछा।
" आपके सारे सवालों का जवाब " - डॉक्टर प्रभाकर ने अपने मोबाइल की ओर इशारा करते हुए कहा - " इसमें है। " क्या मतलब ? " - दिव्या ने पूछा।
" मैंने अमर को हिप्नोटाइज करके, उससे जो भी सवाल पूछे, उन सबके जवाब इस मोबाइल में रिकॉर्ड कर लिये गये हैं। " - डाॅक्टर प्रभाकर बता रहे थे - " यह एक ऐसी तकनीक है जिसे अक्सर मैं अपने हर मरीज के साथ अपनाता हूँ , ताकि हिप्नोटिज्म से बाहर निकलने के बाद वह ये जान सके कि हिप्नोटाइज की हालत में उसने क्या कुछ बोला था।...अमर ने जो कुछ बताया , उससे यह साबित हो चुका है कि उसके किसी दोस्त ने कोई छल नहीं किया है। एक गलतफहमी उसके और आप लोगों के बीच में हुई है ; उस गलतफहमी की जो वजह है , उसी वजह ने इस पूरे मामले को पुलिस केस में तब्दील कर दिया है , क्योंकि उसी वजह के तहत एक क्राइम किया गया है , एक ऐसा क्राइम जो हिप्नोटिज्म के पेशे पर एक बदनुमा दाग की तरह है ,एक ऐसा बदनुमा दाग , जो इस पेशे पर से लोगों का भरोसा उठाने में एक पल भी नहीं लगायेगा। "
" कैसा क्राइम डाॅक्टर ? " - रवि ने चकित होकर पूछा।
" जल्द ही सब कुछ आइने की तरह साफ होगा , लेकिन पहले एक जिम्मेदार डाॅक्टर के रूप में मुझे अपना फर्ज निभाना होगा। " - कहते हुए डाॅक्टर प्रभाकर ने अपने मोबाइल से एक नंबर मिलाया।
" हैलो ! " - उधर से आवाज़ आयी।
" इंस्पेक्टर रजत ! डाॅक्टर प्रभाकर बोल रहा हूँ। "
" बोलिये डाॅक्टर ! "
" एक केस की बाबत कुछ जानकारी देनी थी आपको। "
" कहिये। "
" फोन पर नहीं। यहाँ आना होगा आपको। "
" आपके क्लिनिक पर ? "
" जी। "
" अभी आना होगा ? "
" बिल्कुल अभी। "
" ओके। मैं दस मिनट में पहुंचता हूँ। "
डाॅक्टर प्रभाकर ने फोन कट कर दिया।
ठीक दस मिनट बाद इंस्पेक्टर रजत सक्सेना अपने दो हवलदारों के साथ डाॅक्टर प्रभाकर के सामने बैठा था।
" कहिये डाॅक्टर ! क्या मदद कर सकता हूँ मैं आपकी ? " - इंस्पेक्टर ने बिल्कुल सहज भाव से पूछा।
" पहले आप यह रिकार्डिंग सुन लीजिये,उसके बाद आपको बाकी बातें भी बता दूंगा। " - कहते हुए डाॅक्टर प्रभाकर ने अपने मोबाइल से वह रिकार्डिंग चालू कर दी।
सभी रिकार्डिंग सुनने के लिए सतर्क हो गये।
डाॅक्टर प्रभाकर और अमर के हिप्नोटिज्म रुम में प्रविष्ट होते ही रिकार्डिंग शुरू हो चुकी थी।
" यहाँ बैठ जाओ अमर ! " - डॉक्टर प्रभाकर की आवाज़ थी यह।
अमर ने डाॅक्टर के निर्देश का पालन किया।
" अब अपने शरीर को धीरे-धीरे ढीला छोडो। "
अमर कुर्सी पर बैठे बैठे ही अपने शरीर को ढीला छोडने लगा।
" अब इस लाॅकेट को देखो। " - कहते हुए डाॅक्टर प्रभाकर एक लाॅकेट को अमर की आंखों के सामने बायें से दायें और दायें से बायें धीरे-धीरे हिलाने लगे।
लाॅकेट के साथ साथ अमर की आंखें भी बायें से दायें और दायें से बायें झूलने लगी।
कुछ ही समय बाद अमर का दिमाग डाॅक्टर प्रभाकर के कंट्रोल में आ चुका था।
अमर सम्मोहित हो चुका था।
" तुम थके हुए हो। तुम्हें नींद आ रही है। " - डॉक्टर प्रभाकर बोले।
अमर के दिमाग ने निर्देश का पालन किया।
अब अमर अर्द्ध निद्रा की अवस्था में पहुंच चुका था।
" अब मैं तुमसे जो सवाल करुंगा , उन सबका तुम बिल्कुल सही सही जवाब दोगे। "
" हाँ। " - अमर धीमे से बोला।
" तुम अपने दोस्तों से इतने नाराज क्यों हो ? "
" वो सब मतलबी और स्वार्थी है। "
" तुम ऐसा क्यों सोचते हो ? "
" मैंने हमेशा उन सबकी मदद की और जब मैंने उनकी दोस्ती की परीक्षा लेनी चाही , तो उन्होंने मेरी कोई मदद नहीं की। सबके सब मतलबी साबित हो गये। "
" तुमने उनकी परीक्षा क्यों ली ? "
" डॉक्टर वरूण ने कहा था ऐसा करने को। "
"डाॅक्टर वरूण ने ? " - डॉक्टर प्रभाकर बुरी तरह से चौंक उठे - " उन्हें क्या मतलब तुमसे या तुम्हारे दोस्तों से और तुमने उनकी बात क्यों मानी ? और तुम उनके पास गये क्यों थे ? "
" संयोग ने कहा था। "
" क्या कहा था संयोग ने ? "
" मुझे डरावने सपने आते थे , संयोग ने बताया था कि डाॅक्टर वरूण बहुत अच्छे हिप्नोथेरेपिस्ट है और वो मुझे डरावने सपनों से छुटकारा दिला सकते हैं। "
" संयोग तुम्हारा दोस्त है ? "
" नहीं, वो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है। "
" तुमने संयोग की बात क्यों मानी ? "
" सचिन ने बताया कि संयोग को भी बुरे सपने आते थे। किसी हिप्नोथेरेपिस्ट ने उसकी इस समस्या को खत्म कर दिया था। "
" डॉक्टर वरूण ने तुमसे क्या कहा ? "
" डॉक्टर वरूण ने कहा कि मैं अपनी फरारी में बैठे हुए ' दोस्त , दोस्त ना रहा ' - यह गाना सुन रहा हूँ। फिर डाॅक्टर ने कहा कि मैं अपने दोस्तों की परीक्षा लूं। "
" और तुमने अपने दोस्तों की परीक्षा ली ? "
" नहीं। मैंने सिर्फ डाॅक्टर वरूण के निर्देशों का पालन किया , बिल्कुल वैसे ही जैसे आपके निर्देशों का पालन कर रहा हूँ। डाॅक्टर वरूण जो जो कहते गये , वो सब मैं अपनी रूह में उतारता गया। "
" क्या क्या कहा डाॅक्टर वरूण ने ? "
" डॉक्टर वरूण ने कहा कि मैंने भारती से नोट्स मांगे , लेकिन उसने देने से मना कर दिया। मैंने सचिन से उसका लकी बेट मांगा , पर उसने नहीं दिया। "
" और क्या कहा डाॅक्टर वरूण ने ? "
" डॉक्टर वरूण ने यह भी कहा कि मेरे पिताजी ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है और मुझे अपने दोस्तों से मदद लेनी है , मेरे किसी दोस्त ने कोई मदद नहीं की। "
" डॉक्टर वरूण कहते गये और उनकी हर बात को तुम सच मानते गये ? "
" हाँ। "
" क्यों ? "
" डॉक्टर वरूण ने हिप्नोटिज्म के जरिये मेरे दिमाग को अपने काबू में कर लिया था , उनकी कही हर बात को सच मानने के लिये मैं मजबूर था। "
रिकार्डिंग सुनकर हर किसी के पैरों तले जमीन खिसक गयी।
इंस्पेक्टर रजत सक्सेना ने तुरंत ही दोनों हवलदारों को कुछ निर्देश दिए , जिन्हें सुनने के बाद वे वहां से चले गये।
" तो इन सब दोस्तों की दोस्ती को तोड़ने के लिए इतनी बडी साज़िश करने की जरूरत आन पडी ! " - इंस्पेक्टर सक्सेना बोले।
" जाहिर सी बात है। " - डॉक्टर प्रभाकर ने कहा।
" इतना बड़ा धोखा ? " - भारती स्तब्ध थी।
" धोखा नहीं गेम प्लान ! " - सचिन के मुंह से निकला।
" अच्छा होना भी आज की दुनिया में सबसे बड़ा अपराध है। " - रवि बोला।
दिव्या और सनी की हालत भी कुछ बहुत ठीक नहीं थी।
कुछ ही समय बाद दोनों हवलदार दो लोगों के साथ वहां उपस्थित हुए।
" ये है डाॅक्टर वरूण शर्मा एक मशहूर हिप्नोथेरेपिस्ट ! " - डाॅक्टर प्रभाकर ने उनका परिचय देते हुए कहा - " और इस दूसरे शख्स से तो आप परिचित ही होंगे। "
" संयोग ! " - एकाएक ही सबके मुंह से चीख निकल गयी।
" इन्हीं दोनों की मिलीभगत से अमर की लाइफ तबाह हुई है...क्यों संयोग ? "
" यह झूठ है। " - संयोग बोला।
" यही सच है ! " - अचानक से अमर वहां आ गया।
आधे घंटे से ज्यादा वक्त हो चुका था और अमर को होश आ चुका था।
" झूठ - सच का फैसला अब पुलिस स्टेशन चलकर होगा। " - कहते हुए इंस्पेक्टर सक्सेना ने डाॅक्टर प्रभाकर से रिकार्डिंग ली और हवलदारों से कहा - " ले चलो दोनों को। "
इंस्पेक्टर रजत सक्सेना संयोग और डाॅक्टर वरूण को लेकर वहां से चले गये।
" अमर ! तुम ठीक हो ना ? " - भारती ने पूछा।
" हाँ , मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ। डाॅक्टर वरूण ने मेरे दिमाग में जो भी गलत बातें भरी थी , उन्हें डाॅक्टर प्रभाकर ने हिप्नोटिज्म के जरिये निकाल दिया है और अब मुझे सब कुछ पता है। मैं जानता हूँ कि मेरे दोस्त कभी मतलबी और स्वार्थी नहीं हो सकते। संयोग की बदनीयती से मेरे मन में जो गलतफहमियां जन्मीं थी , उन्हीं की वजह से मैंने तुम सब दोस्तों के साथ गलत तरीके से बिहेव किया। मुझे माफ कर देना दोस्तों ! "
" सब भूल जाओ अमर ! " - सचिन बोला - " जो हुआ , उसमें किसी की कोई गलती नहीं थी। "
" माफी तो मुझे भी मांगनी है। " - दिव्या बोली - " अमर ! हो सके तो मुझे माफ कर देना। ये सब तो तुम्हारे सच्चे दोस्त है , लेकिन मैंने तुम्हारे साथ दोस्ती का नाटक किया है। "
" यह तुम क्या कह रही हो दिव्या ? " - अमर बुरी तरह से चौंक उठा।
" नहीं दिव्या ! " तुमसे अच्छा दोस्त तो कोई हो ही नहीं सकता। " - भारती बोली - " तुम मदद नहीं करती तो हमें अमर कभी नहीं मिलता। "
" कैसी मदद ? " - अमर कुछ समझ नहीं पा रहा था।
" अमर ! " - रवि ने कहा - " तुम्हारे पिता तुम्हारी नशेबाजी छुडाकर तुम्हें फिर से एक अच्छा इंसान बनाना चाहते थे , इसमें दिव्या ने मदद की। समस्या की तह तक पहुंचकर दिव्या ने सब ठीक कर दिया। "
इसके बाद रवि ने अमर को पूरी बात बतायी।
" थैंक्स दिव्या ! " - अमर खुशी से बोला - " सच में , तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो। मेरे सब दोस्तों में भी सबसे अच्छी। "
जवाब में दिव्या सिर्फ मुसकरा दी।
सभी ने डाॅक्टर प्रभाकर को धन्यवाद दिया और उनकी फीस अदा करके अमर के घर की राह ली।
□ □ □
अमर के ठीक हो जाने की खुशी में मिस्टर पंकज जडेजा ने अपने घर में एक शानदार पार्टी रखी थी।
इस पार्टी में अमर के सभी दोस्त , डाॅक्टर प्रभाकर और दिव्या भी आये थे।
दिव्या अपने साथ साकेत और विकास को भी लायी थी।
" मैं समझ नहीं पा रहा दिव्या कि किन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करुं। " - मिस्टर पंकज जडेजा खुशी से प्रफुल्लित होते हुए बोले - " तुम कल्पना भी नहीं कर सकती कि अपने पुराने बेटे अमर को पाकर मैं कितना खुश हूँ। "
" मैं समझ सकती हूँ। " - दिव्या मुसकराते हुए बोली - " बिगडे हुए बेटे का फिर से सुधर जाना एक पिता के लिये क्या महत्व रखता है, यह मैं समझ सकती हूँ। "
" दिव्या ! आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम मुझसे जो चाहो , मांग सकती हो , मैं मना नहीं करुंगा । "
" नहीं अंकलजी ! अमर के रूप में मुझे एक बहुत अच्छा दोस्त मिला है , मुझे और कुछ नहीं चाहिए। "
" दिव्या ! " - अचानक साकेत बीच में बोल उठा - " विकास को मत भूलो। "
" क्या ? " - मिस्टर पंकज जडेजा चौंक उठे - " कौन विकास ? "
" नहीं , कुछ नहीं। " - दिव्या बोली - " ये तो बस यूँ ही। "
" अरे , दिव्या ! " - साकेत बोला - " संकोच मत करो। यह विकास की जिन्दगी का सवाल है। "
अब मिस्टर पंकज जडेजा समझ चुके थे कि कोई ऐसी बात है जो बहुत महत्वपूर्ण है , लेकिन दिव्या कहने में संकोच कर रही है।
" तुम बताओ साकेत ! क्या बात है ? " - मिस्टर जडेजा ने सीधे साकेत से पूछा।
साकेत ने विकास के बारे में बताया।
" ओह ! तो यह बात है । दिव्या! तुम सच में , बहुत महान हो। " - मिस्टर जडेजा बोले - " तुम चिंता मत करो। विकास आज से मेरा बेटा है। इसे पढा लिखा कर मैं इस योग्य बना दूंगा कि यह समाज में सिर उठाकर जी सके। आज से मेरे एक नहीं , दो बेटे हैं - अमर और विकास। "
"आपका बहुत बहुत धन्यवाद अंकल। "
विकास को अब न केवल एक पिता , बल्कि एक भाई भी मिल चुका था।
- समाप्त
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