मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

शुक्रवार, 12 जुलाई 2019

चीटफंड कम्पनी







चीटफंड कम्पनी की एक मीटिंग!
" हम एक नया प्रोजेक्ट लाये हैं,

अतुल धन-सम्पदा कमाने को हमने

कई हथकण्डे अपनाए है।

हो नहीं पाये सफल अभी तक हम,

नहीं है फिर भी कोई गम।"

- भूमिका बांधने के साथ ही कम्पनी के प्रेसीडेंट ने अपना वक्तव्य शुरू किया।

" क्योंकि आज हम चीटफंड कम्पनी के जरिये लोगों को चीट कर करके फंड जमा करेंगे। लोग हमसे फंड  के रिफंड की आशा करेंगे और हम सारा फंड लेकर रफूचक्कर हो जायेंगे। "

" लेकिन यह संभव होगा कैसे ?

हम तो अक्सर ही हारते रहे है वैसे। " - एक कर्मचारी ने सवाल दागा।

" नहीं करो तुम जरा भी फिक्र,

कर रहा हूँ अब मैं बस इसी मुद्दे का जिक्र। " प्रेसीडेंट की वाणी में उत्साह था।

" हमारी कम्पनी का हर एक कर्मचारी अपने नीचे एक आदमी को जोडेगा, जुडने वाला आदमी ज्वाइनिंग फीस के रुप में 1000 रुपये जमा करेगा। यह 1000 रुपया सीधे चीटफंड कम्पनी के खाते में जमा होगा। कम्पनी उस आदमी को लाइफ टाइम हर महीने 100 रुपये रिफंड देगी। वह आदमी अपने नीचे दो आदमियों को जोडेगा और वे दो आदमी भी अपने नीचे दो- दो आदमियों को जोडेंगे। इस तरह से आदमी जुडते जायेंगे, हमारी कम्पनी का प्रोफिट बढता जायेगा और हम जुडने वाले हर आदमी को 100 रुपये हर महीने देते जायेंगे। "

मीटिंग में उपस्थित सभी कर्मचारी पेशोपेश में पड गये।

" लेकिन, इससे हमें क्या लाभ होगा ? " - एक कर्मचारी ने साहस करके पूछा।

प्रेसीडेंट ने हल्के से मुसकराते हुए कहा- " 6 महीने में ही हमारे चंगुल में  लाखों मुफ्तखोर फंस जायेंगे और सातवें महीने में हम कम्पनी बंद करके रफूचक्कर हो जायेंगे। "
प्रेसीडेंट की बुद्धीमत्ता पर हाॅल तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा।
सभा की सफलता पर सबने एक दूसरे को बधाई दी।
इसी के साथ मीटिंग समाप्त हुई।

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