तन्हा हूँ मैं,
तन्हा जीवन है मेरा,
तन्हाई मेरी साथिन।
तन्हा ही चलना है ज़िंदगीभर,
तन्हा ही करना है सामना मुश्किलों का।
कहानी मेरी है,
लिखने वाला मैं हूँ,
कोई और क्यों करें दखलअंदाज़ी इसमें,
क्यों दूँ हक़ किसी और को ये।
साक्षी मेरे सुख-दुःख की,
गवाह मेरे संघर्ष की,
रही है सदा तन्हाई ही।
क्या तकलीफें उठायी मैंने,
क्या कुछ सहा,
महसूस किया,
ये सब,
जाना-समझा है बस मेरी तन्हाई ने।
तब,
क्यों दिखाऊं किसी और को जख्म अपने,
क्यों कोई समझेगा मुझे,
मेरी तकलीफों को।
.
रास नहीं आती दुनिया मुझे,
न यहाँ के रीति-रिवाज़,
रहता हूँ बस इसीलिये तन्हा ही मैं।
और कहता हूँ फक्र से,
हाँ तन्हा हूँ मैं,
तन्हा जीवन है मेरा,
तन्हाई मेरी साथिन।
1 Comments
गहराई से उठती उदासीयों को रास आती तनहाइयों का बाना पहनाती हृदय छूती रचना ।
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