कल तक जो चाहते थे,
दूर जाना हमसे।
क्यों आज पास आने के,
बहाने खोजा करते हैं।
सहन न होता था जिनको,
हमारा आसपास भी होना।
क्यों आज वो ही हमे,
यहां वहाँ खोजा करते हैं।
चाहते थे कभी,
ओझल कर देना हमको,
नजरों से अपनी।
क्यों आज वो ही खुद,
हमारी नज़रों में आना चाहते हैं।
कहा था हमने तो,
कि,
बेक़सूर है हम,
लगा दिया फिर भी उन्होंने,
आरोप हम पर।
और,
आज वो ही,
कसूरवार होना चाहते हैं।
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