मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

चलते रहो राही!


चलते रहो राही हो तुम,
रुकने का तुम्हे अधिकार नहीं।
हंसते मुसकराते बढे चलो मंजिल की ओर,
दुखी होने, रोने में कोई सार नहीं।

सोचते हो, रुक जाऊं;
थोडा आराम कर लूँ,
पर रुकना राही का काम नहीं।
चलते रहो राही हो तुम,
रुकने का तुम्हे अधिकार नहीं ।

माना मंजिल अभी दूर है,
असीमित थकान और आंखों में सरुर है,
पर हुई अभी शाम नहीं।
चलते रहो राही हो तुम,
रुकने का तुम्हे अधिकार नहीं ।

ओठों पर प्यास है, पेट में भूख है
पलभर भी तुम्हें अवकाश नहीं,
बढे चलो राही,
करना है अभी तुम्हें आराम नहीं।
चलते रहो राही हो तुम,
रुकने का तुम्हे अधिकार नहीं ।

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