डेली न्यूज़ एजेंसी के ऑफिस से निकालकर दक्ष और स्नेहा सीधे प्रताप म्युजियम पहुँचे।
वहाँ पर म्युजियम के मैनेजर विकास सक्सेना ने सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए पत्थर के आदमी के बारे में उनको सारी जानकारी मुहैया करवाई। उसी जानकारी के आधार पर दक्ष और स्नेहा ने एक रिपोर्ट तैयार की और न्यूज़ के रूप में छपने के लिए प्रकाश आहूजा को मेल कर दी।
इन सब कामों में शाम के 6 बज गए, जबकि उनका ऑफिस टाइम तो 5 बजे तक ही था।
बहरहाल अब वे अपने अपने घर जाने के लिए फ्री थे।
दक्ष और स्नेहा ने एक दूसरे से विदा ली और अपनी अपनी मंजिल की ओर चल पड़े।
दक्ष ने अपनी बाइक संभाली और अपने निवास स्थान विनायक कॉलोनी की ओर चल पड़ा। ऑफिस से घर जाते समय तो वह रास्ते में पड़ने वाले नीलम रेस्टोरेंट में ही डिनर लेता था। लेकिन आज तो उसे महेश रोड़ से अपने घर की ओर जाना था, जहाँ से कि नीलम रेस्टोरेंट काफी दूर पड़ जाता था। इसीलिए रास्ते में पड़ने वाले किसी और ही रेस्टोरेंट में उसने डिनर लेने का मन बना लिया था।
स्नेहा ने अपनी स्कूटी मानसरोवर कॉलोनी के रास्ते पर डाल दी। घर तक पहुँचने में उसे करीब एक घंटा लग गया।
ठीक 7 बजे उसने स्कूटी मानसरोवर कॉलोनी में मकान नम्बर 85 के सामने पार्क की और मकान की कॉल बेल बजाई।
जल्दी ही दरवाजा खुला।
“ आज तो काफी देर लगा दी आने में आपने। “ - स्नेहा को देखते ही उसका भाई विशाल बोला।
वही विशाल, जो आर्ट्स कॉलेज में बी ए फाइनल ईयर का स्टूडेंट था।
“ हाँ। “ - बुझे स्वर मे बोलकर स्नेहा भीतर आई और अपना हैंड बैग एक तरफ पटक कर सोफे पर ढेर होते हुए बोली - “ आज कुछ ज्यादा ही काम था ऑफिस में। “
“ सिर्फ ऑफिस में ? “ - विशाल जानता था कि स्नेहा एक रिपोर्टर थी और उसका काम महज ऑफिस की चारदीवारी के भीतर रहना नहीं था। फील्ड वर्क भी करना होता था।
“ फील्ड में भी था। “ - स्नेहा जम्हाई लेते हुए बोली - “ और ऐसा था कि सुनोगे तो पैरों तले जमीन खिसक जायेगी। “
“ अच्छा! “ - आश्चर्य प्रकट करते हुए बोला विशाल - “ ऐसा क्या काम था ? “
“ बताती हूँ, बताती हूँ। “ - उठते हुए स्नेहा बोली - “ पहले कुछ तरोताजा तो हो लूँ। “
“ हाँ। वैसे भी आज आप बहुत थकी थकी सी लग रही हो। तब तक मैं आपके के लिए कॉफी बनाता हूँ। “ - बोलते हुए विशाल किचन की तरफ बढ़ गया और स्नेहा बाथरूम की तरफ।
फेसवॉश से मुँह धोने के बाद स्नेहा ने अपनी मैली हो चुकी ड्रेस के स्थान पर आरामदायक सलवार सूट धारण किया, गुलाबी कलर का था। अब वह खुद को तरोताजा और नहाया हुआ महसूस कर रही थी। वैसे भी शाम के 7 बजे का समय नहाने के लिए उपयुक्त होता नहीं है।
जब स्नेहा हॉल में लौटी तो विशाल को उसने सोफे पर बैठे पाया। सोफे के सामने ही मेज पर से कॉफी का कप उठाते हुए वह विशाल के सामने ही एक कुर्सी पर बैठ गई।
“ अब बताओ। “ - विशाल उत्सुक होकर बोला - “ क्या किया आज ? “
स्नेहा ने सब कुछ कॉफी सिप करते हुए बड़े आराम से बताया, जिसे सुनकर विशाल न केवल आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा बल्कि कुछ हद तक परेशान भी हो उठा।
“ इतना बड़ा रिस्क! “ - चकित होते हुए विशाल बोला - “ नहीं लेना चाहिए था। तुमको अगर कुछ हो जाता तो! “
“ क्राईम रिपोर्टिंग वैसे भी रिस्क का ही दूसरा नाम है। “ - स्नेहा बोली।
“ वो तो ठीक है। “ - विशाल कुछ चिंतित स्वर में बोला - “ लेकिन इसके लिए जान जोखिम में डालने की क्या जरूरत थी! “
“ अरे, ऐसा नहीं करते तो इंटरव्यू नहीं हो पाता और इंटरव्यू नहीं हो पाता.. “
“ तो क्या हो जाता! जीवन से बढ़कर भी किसी चीज का महत्व होता है क्या ? “
“ होता है ना! “
“ क्या ? “
“ तुम भूल रहे हो, मैंने रिपोर्टिंग को करियर के रूप में क्यों चुना था! “
“ एडवेंचर के लिए! हर किसी की मदद करने के लिए! “
“ बिल्कुल। “ - मुस्कुराते हुए स्नेहा बोली - “ और वही तो कर रही हूँ मैं। यकीन मानो, मैं अपने काम से बहुत, बहुत, बहुत खुश हूँ। “
“ ठीक है। लेकिन आप अपना ध्यान रखा करो। “ - विशाल बोला - “ और हाँ, एडवेंचर से ध्यान आया उस उड़ने वाले इंसान के बारे में कुछ और बातें पता चली है। “
“ उड़ने वाले इंसान के बारे में ! “ - स्नेहा बोली।
“ हाँ। उसका केस इंस्पेक्टर अभय माथुर देख रहे हैं। “
“ अभय माथुर! “ - हैरत भरे स्वर में बोली स्नेहा - “ लगता है पुलिस विभाग में और कोई जिम्मेदार पुलिस ऑफिसर बचा ही नहीं है। सारे विचित्र केस इंस्पेक्टर अभय के हिस्से ही आ रहे हैं। “
“ सारे विचित्र केस! “ - विशाल चौंका - “ आप कहना क्या चाह रही हो ? और भी कोई अजीब केस हाथ में लिया है क्या इंस्पेक्टर माथुर ने ? “
“ हाँ। और वह इतना अजीब है कि उसके सामने उड़ने वाले इंसान की गुत्थी तो कुछ भी नहीं है। “ - कहते हुए स्नेहा ने पत्थर वाले आदमी के बारे में म्युजियम के मैनेजर विकास सक्सेना से जो कुछ सुना था, सब बताया।
“ क्या ? “ - बुरी तरह से चौंक पड़ा विशाल - “ ये तो बिल्कुल ही असम्भव है ! कोई इंसान पत्थर से बना कैसे हो सकता है! “
“ कल उड़ने वाला इंसान और आज पत्थर का आदमी! क्या पता, आगे और क्या कुछ देखना पड़ जाए! “
“ ये सब हो क्या रहा है! “
“ वैसे तुम कुछ नई जानकारी देने वाले थे, उस उड़ने वाले इंसान के बारे में ? “
“ हाँ। लेकिन पहले ये जान लो कि उस जानकारी का सोर्स क्या है। “
“ क्या है ? “
“ रॉकी। “
“ क्या ? “ - चकित स्वर में स्नेहा बोली - “ रॉकी ! उससे कोई जानकारी निकलवाना तो बड़ी टेढी खीर है! आसानी से तो कुछ उगला नहीं होगा उसने। “
“ एक ग्रैंड पार्टी की डिमांड की उसने। “
“ फिर ? “
“ फिर क्या! आपके बारे में सोचकर मैंने हाँ कर दी। “
“ वो तो ठीक है, पर जानकारी कुछ काम की भी है या नहीं। “
“ अब ये तो आप ही तय करना। मुझे बस इतना पता है कि ये रॉकी नेचर का चाहे जैसा हो, आपकी पत्रकारिता के लिए है बड़े काम का। “
“ मानती हूँ। “
इसके बाद विशाल ने रॉकी से मिली जानकारी स्नेहा के साथ साझा की।
“ ये तो बड़े काम की जानकारी निकली तूने! “ - खुश होते हुए स्नेहा बोली - “ लेकिन, अब रॉकी के लिए पार्टी का इंतजाम कैसे होगा ? “
“ चैरिटी से। “ - कुटिलता पूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए विशाल बोला।
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