मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

किस्मतवाला

हँसता है,हंसाता है,
गम अपने वो,
सबसे छिपाता है। 

कहते हैं लोग,
खुश है वो,
और है,
किस्मतवाला भी। 

किये होंगे कर्म अच्छे,
 उस जनम में,
दे रहे हैं फल अच्छे जो,
इस जनम में। 

सुनता है वो,
दुखड़े उन मित्रों के,
है परेशान जो,
अपने ही बेटे-बहू से,
उनके परायेपन के बर्ताव से। 

मित्र आसूँ बहाते हैं,
वो सहानुभूति जताता है। 

और,

न जाने क्यों,
मित्रों के जाते ही,
फुट पड़ती है,
रुलाई उसकी भी। 
रो उठता है,
फूट -फूटकर,
वो खुद भी। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"

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