मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

बदलाव


बहुत कुछ बदल चुका है यहां,
लोग कुछ को कुछ समझने लगे हैं।

पहले जो संकेत मात्र से समझ जाते थे,
अब बार-बार कहने से भी नहीं समझते।

सोचता हूँ,

छोड़ दूँ सबको।

पर ईगो है कि,
भूलने नहीं देता कुछ भी।

हरदम बस एक ही बात दिमाग में घूमती है,
कि
 पा लूँ किसी तरह वो सब,

छूट चूका है जो,
पीछे,
बहुत पीछे।

पर,
संभव नहीं ऐसा करना,

इसीलिए,

रहने देता हूँ,

जो,
जैसा,जहां,
जिस हाल में हैं।

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