जीवन और मंजिल

जीवन एक पहेली है,
 समझो इसे।
जीवन एक उलझन है,
 जानो इसे।
हर वक्त सोचते हैं,
 क्यों चलना शुरू किया,
 कब तक चलते रहेंगे यूं ही।
न राह का पता है,
 न मंजिल का।
घर से निकले थे जब,
 जानते थे कहाँ जाना है,
 मंजिल भी निगाहों में थी,
 राह का भी पता था।
पर चार कदम चलते ही,
जाने क्या हो गया,
कि,
विस्मृत हो गयी मंजिल,
 भूल गये रास्ता।
आज भटकन है,
 भ्रम है,
 रास्ते कई है,
 मंजिल नदारद हैं।

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