हिप्नोटाइज - थ्रिलर उपन्यास ( भाग - 1 )


" दिव्या आपकी हेल्प कर सकती है।"

" क्या ? कौन ?"
" दिव्या ...दिव्या शर्मा। "

" रवि! तुम मेरे बेटे के बहुत अच्छे दोस्त होकर भी उसकी मदद नहीं कर पा रहे हो, फिर कोई लडकी..."

" वह कोई आम लडकी नहीं है, वह बहुत ही सुलझे दिमाग वाली समझदार लडकी है। लोग समझते है कि केवल लडके ही किसी काम में लडकियों से अधिक एक्सपर्ट होते हैं, पर दिव्या हर काम को अच्छी तरह से कर सकती है। "

मिस्टर पंकज जडेजा बोले - " रवि! चाहे जैसे भी हो, एक बार मेरा बेटा सुधर गया, तो... "

" अंकल! आप टेंशन मत लीजिये। अगर दिव्या ने आपका काम कर दिया तो ठीक है, लेकिन वो नहीं कर पायी तो दुनिया का कोई इंसान आपकी मदद नहीं कर सकेगा।"

" पर, दिव्या है कौन ?...रहती कहाँ है ? "

" दिव्या मेरे ही काॅलेज में पढती है। मैं जल्द ही उसे आपसे मिलवाने लाऊंगा। "
जयपुर का एक पार्क। इस पार्क में बहुत-से पेड़  - पौधे थे। फव्वारे भी चल रहे थे। यहाँ कुछ बच्चे भी खेल रहे थे।
एक लडका, नीम के पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। वह दूसरे लड़को को खेलते देखकर खुश हो रहा था। वह खेल नहीं सकता था, क्योंकि कोई भी उसे अपने साथ खिलाना पसन्द नहीं करता था।
पहले वह बहुत दुःखी रहता था कि कोई उसे अपने साथ खिलाना नहीं चाहता, पर धीरे-धीरे उसने अकेले रहने की आदत डाल ली थी। अब तो वह दूसरों को देख - देख कर ही खुश रहता था।
उसका नाम विकास था। विकास रोज उस पार्क में आकर घंटों घूमा करता था। वह उन अमीर परिवार के लड़को को देखता था, जो सारी सुविधाएं मिलने पर भी जिद करते थे।
विकास कुछ बडी उम्र के लडके  - लडकियों को देखता था, जो उस पार्क में आकर घंटों बातें किया करते थे। वह कभी नहीं जान पाया कि वे क्या बातें करते है ?
विकास कुछ ऐसे लडको को भी देखता था, जो बेवजह किसी को भी मारने लगते थे , वे सिगरेट - शराब पीते और कभी-कभी विकास को भी पीटने लगते।
यह पार्क ही विकास की दुनिया थी। पार्क से बाहर, वह खुद को असुरक्षित महसूस करता था।
" अरे वाह ! कितनी खूबसूरत है वो ! " - उसे देखते ही विकास का मन खुशी से प्रफुल्लित हो उठा।
वह दूध- सी सफेद कुतिया थी। उसके साथ एक लडकी भी थी। उस लडकी की तरफ विकास का ध्यान नहीं गया। कुतिया के गले में पट्टा नहीं था, इसीलिये विकास को लगा कि वह एक आवारा कुतिया है।
विकास ने उठकर कुतिया की ओर कदम बढाये। कुतिया के पास पहुंचकर, उसने कुतिया को अपने दोनों हाथों से उठा लिया।
" बाऊ...वाऊ..."  - कुतिया भौंकने लगी।
" चिंता मत करो प्यारी कुतिया! " - विकास ने कहा  - " मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा। मैं तो तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूँ। तुम्हारा नाम क्या है ? "
" जीनी ! "
" अरे वाह ! तुम तो बोलती भी हो! मैंने आज से पहले कभी बोलने वाली कुतिया नहीं देखी। " - विकास खुशी से चहकने लगा।



" क्या ?....मेरे बोलने पर तुम्हें अजीब लग रहा है ? और... और...तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई..." - अब विकास ने उस लडकी को देखा, जो कुतिया के साथ उस पार्क में आयी थी।
वह 21 वर्ष की एक खूबसूरत लडकी थी।
" साॅरी! " - विकास बोला -"  मैं तो बस..."
" कोई बात नहीं " - लडकी ने मुसकराते हुए कहा।
" हैलो! मेरा नाम विकास है और मैं 12 साल का हूँ। " - अपना परिचय देते हुए विकास ने पूछा  - " तुम्हारा नाम क्या है ? "
" दिव्या! " - लडकी ने कहा - " तुम्हें जीनी पसंद है ? "
" बहुत...यह बहुत अच्छी है। "
" अच्छा! तुम्हारा नाम क्या है ? "
" विकास।"
वाह! यह तो बहुत अच्छा नाम है। "
" धन्यवाद। " - कहते हुए विकास ने पूछा - " क्या मैं जीनी के साथ कुछ देर खेल सकता हूँ ? "
" जरुर! " - दिव्या बोली  - " इसे भी नया दोस्त पाकर खुशी होगी। "
विकास जीनी के साथ खेलने लगा और दिव्या पार्क में टहलने लगी।
जीनी को देखकर दूसरे बच्चे भी उसके पास आने लगे। पर जब उन्होंने जीनी के साथ विकास को देखा, तो वे दूर हट गये।
" दिव्या! तुम विकास को जानती हो ? " - एक लडके ने पूछा।
" हाँ। "
" कौन है विकास ? "
" वो जो जीनी के साथ खेल रहा है। "
" जीनी कौन ? "
" वह कुतिया जो विकास के साथ है। "
" तो उसका नाम जीनी है ! "
" हाँ। अच्छा नाम है ना ? "
" अच्छा था, पर अब नहीं रहा। "
" क्या मतलब ? "
" अब उसका नाम गन्दा हो गया है, क्योंकि उसने विकास के साथ दोस्ती कर ली है। "
" क्या ? " - दिव्या चकित थी  - " तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ? "
" लगता है तुम विकास को जानती नहीं हो। विकास गन्दा लडका है और कोई उससे बोलना भी पसंद नहीं करता। "
" क्यों ? "
" यह तुम विकास से ही पूछो। "
दिव्या विकास के पास गयी और उस लडके के साथ हुई बात के बारे में उसने विकास को बताया।
" मुझे माफ कर दो दिव्या! " - विकास बोला  - " मेरे कारण..."
" तुम माफी क्यों मांग रहे हो ? और वो लडका क्यों कह रहा था कि तुम गन्दे लडके हो। "
" दिव्या! सच तो यह है कि मेरे साफ - सुथरे कपडे देखकर कोई भी अजनबी धोखा खा जाता है। मैं एक अनाथ हूँ। मेरी मां ने मुझे जन्म देते ही कचरे के डिब्बे में डाल दिया था। एक हरिजन महिला ने मुझे अपने पास रखा। 11 साल का होने पर उसने मुझे अपने साथ काम करने के लिये कहा, पर मैंने नालियाँ, गटर और सडकें साफ करने से मना कर दिया। उसने मुझे छोड़ दिया और पिछले एक साल से मैं अकेला हूँ। "
12 साल के छोटे से बच्चे के मुंह से इतनी बडी बात सुनकर दिव्या चकित रह गयी। उसने पूछा  - " तुम्हें कैसे मालूम चला कि तुम अनाथ हो और तुम्हारी माँ ने तुम्हें कचरे के डिब्बे में डाला ? "
विकास ने बताया  - " हरिजन महिला से जब मैंने काम नहीं करने की बात कही, तब उसने बताया। "
" तो अब तुम्हें भोजन कौन देता है ? तुम रहते कहाँ हो ? और सबको तुम्हारे बारे में कैसे पता ? "
" मैं इसी पार्क के पास वाली बस्ती में रहता हूँ। जब से मैंने हरिजन महिला को बताया कि मैं गटर साफ करने का काम नहीं कर सकता, तभी से वो मुझसे नफरत करने लगी है।इसी कारण वह जहां भी जाती है, वहाँ के लोगों को मेरे बारे में सब कुछ बता देती है। "
" फिर, तुम्हें ये कपडे और भोजन कौन देता है ? "
" मेरा एक दोस्त है - रहीम। उसके पिताजी मेरा बहुत ध्यान रखते है। वे ही मुझे अच्छे कपडे और खाना देते हैं । " - विकास बता रहा था  - " मैं जानता हूँ कि अमीर हरिजन से ही सब दोस्ती करते है, गरीब हरिजन से नहीं। इसीलिये मैं जल्द ही अमीर बनकर सबसे दोस्ती करना चाहता हूँ। "
दिव्या बोली  - " तुम जरुर एक दिन बहुत अमीर बन जाओगे। पर मैं और जीनी हमेशा तुम्हारे दोस्त रहेंगे। तुम हर रोज जीनी और मेरे साथ खेला करो। "
विकास बहुत खुश हुआ।
पहली बार, एक ऐसी लडकी उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढा रही थी, जो हरिजन नहीं थी, बल्कि ब्राह्मण थी।
                                                        - क्रमश :

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें