क्यों

 क्यों थक गए तुम,
चलते चलते।
क्यों रुक गए तुम,
मंज़िल तक पहुंचने से पहले।

हुए नहीं अभी,
कांटो से भी रूबरू
और,
फूलो को  देखकर ही बहकने लगे।

जाना है अभी तो,
बहुत आगे,
चलना है अभी तो,
मीलो दूर,
आया नहीं अभी तो,
पहला पड़ाव भी,
और,
अभी से तुम थकने लगे।

मिलेंगे राही  और भी,
आएँगी बहारे और भी,
पर,
रुकना नहीं है तुम्हे कहीं,
चलना है अभी तो,
मीलो दूर।

मंज़िल तक पहुंचना है,
आज नहीं तो कल सही। 

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9 Comments

  1. जी विजय जी बहुत सुंदर प्रेरक रचना।
    जी कृपया आप ब्लॉग फॉलोवर बटन लगाइये।

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    1. जी बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'गुरुवार' १८ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  3. लाजवाब प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद।

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  4. जीवन पथ को प्रेरणा की संजीवनी से आपूरित करती सजीव रचना!!!

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    1. आपका हार्दिक आभार।

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  5. बहुत ख़ूब प्रेरक रचना

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