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गुरुवार, 22 अगस्त 2024

कवि आहत और कवि उत्थानक

 

कवि आहत कोई कविता बनाते हुए अपनी ही धुन में चले जा रहे थे।

इतने में ही सामने से आते हुए एक पैंट - शर्टधारी महाशय ने उनको रोकते हुए पूछा - “ आप कवि आहत है न ? “

“ हाँ। “

“ मुझसे मिलिए। “ - महाशय बड़े ही उल्लसित स्वर में बोले - “ मैं कवि उत्थानक हूँ। “

“ उत्थानक आपका मूल नाम है या उपनाम ? “

“ अजी, मैं कवियों का उत्थान करता हूँ, इसीलिए लोग मुझे कवि उत्थानक कहते है। “ - जवाब देते हुए वे महाशय बोले - “ आपको धन्य करना चाहता हूँ। “

“ आप किसी संस्था से है? “ - आहत ने अगला प्रश्न दागा।

“ मैं खुद एक संस्था हूँ। एकला चलो पर विश्वास करता हूँ। “ - बोलते हुए वे महाशय एक पैर पर खड़े हो गए।

फिर लड़खड़ाकर गिर पड़े।

दोबारा उठकर बोले - “ हाँ, बोलिये। आपको कैसा उत्थान चाहिए? “

फिर बिना जवाब की प्रतीक्षा किए ही वे पुरस्कारों के पैकेज बताने लगे - “ अखिल भारतीय पुरस्कार के लिए आपको लाख, दो लाख खर्च करना पड़ेगा। जितनी टाँगे खींचो, उतने गिरेंगे। “

कवि आहत विस्मित भाव से सुन रहे थे।

“ राज्य स्तरीय पुरस्कार के लिए आपके तीस हजार खर्च होंगे। “

“ त…तीस हजार! “

“ जिला स्तर के पुरस्कार से संतोष हो तो पंद्रह हजार खर्च करिए। “ - उत्थानक के पास सस्ते पैकेज भी थे।

“ मैं समझा नहीं। “ 

“ पुरस्कार, सम्मान लेने के लिए स्वयं प्रबंध करना होता है। “ - समझाने की गरज से कवि उत्थानक बोले - “ जैसे आपको अखिल भारतीय कवि शिरोमणि का पुरस्कार लेना हो तो सारी व्यवस्था हमारी होगी। “

हतप्रभ आहत सुन रहे थे।

“ आपको अंगवस्त्रम के साथ एक लाख का चेक भेंट किया जाएगा, जो वस्तुतः आपका ही होगा। “ - ठठाकर हँसते हुए उत्थानक बोले - “ वह बाद में आप हमें वापस देंगे। व्यवस्था का सारा खर्च और मेरा कमीशन उसी में से तो होगा। “

उत्थानक आगे बोले - “ सम्मान मिलने पर कवियों में आप ईर्ष्या से देखे जायेंगे। “

“ वह तो मैं अब भी देखा जाता हूँ। “

“ बोलिये, एक लाख देते हैं ? “

“ नहीं। “

“ तीस हजार ? “

“ नहीं। “

“ अरे, तो पंद्रह हजार ही दीजिये। जिले का कवि पुरस्कार की व्यवस्था कर दूँगा। “

“ जी नहीं। “ 

“ आप पहले कवि है जो इनकार कर रहे है। अजीब कवि है आप। विकास की गंगा आपके सामने है, दूसरों की तरह बहती गंगा में हाथ धोना नहीं चाहते। “

“ मेरी कविताएं ही मेरा पुरस्कार है। आप सुनना चाहेंगे ? “

और जवाब की प्रतीक्षा किए बिना ही आहत शुरू हो गए - “ ईश्वर की मिक्सी में पिस जाते है भ्रष्टाचारी। यह बात और है कि वह अब तक ख़राब है। “

उत्थानक महोदय सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए।

समाप्त 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया ,व्यंग्यात्मक रचनाएँ आजकल कम पढ़ने को मिलती है।
    सादर।
    ---------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. यह रचना मेरी नहीं है। इसे अनंत कुशवाहा जी ने चित्रकथा के रूप में लिखा था।

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  3. बेहतरीन व्यंग्यात्मक रचना सटीक सार्थक लेखक की पैनी नजर और लेखन कौशल की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।

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  4. पुरस्कार की यह धांधली, वाकई दुखद है।

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