कहा था मैंने,
करना इनोवेशन,
लेकर लाइफ को,
हर रोज नये-नये।
जब मन हो,
जिसके साथ,
करते रहना,
प्रयोग नये-नये।
किया तुमने ऐसा ही,
किये इनोवेशन,
सीखा कुछ नया,
और,
सिखाया औरों को भी।
पर,
भूल गये क्यों,
नहीं करने थे इनोवेशन,
गलत लोगो पर,
गलत आदतों साथ।
क्या मिला,
गलत इनोवेशन करके,
हुए दुखी खुद भी,
और,
किया औरों को भी।
मिले तुमको आंसू,
और दिये औरों को भी,
जाने-अनजाने ये ही आंसू।
देख ली दुनिया तुमने,
नहीं भरा जी अब भी!
देखोगे दुनिया कितनी तुम?
हर तरफ है यहाँ,
जंगली भेड़िये,
चाहते हैं जो,
सिर्फ स्वार्थ साधना।
नहीं है इन भेड़ियों में,
कोमल भावनाएं,
है इनमे तो बस,
वासना की गंध।
नहीं है अच्छी ये दुनिया,
मत करो अब और इनोवेशन।
जाओ अब,
अपनी ही पुरानी दुनिया में।
है जहां पवित्र भावनायें,
राह देखते हैं तुम्हारी,
वे शख्स,
जो रहे हैं हितैषी,
सदा ही तुम्हारे।
लौट जाओ,
अपनी ही पवित्र सपनो की दुनिया में,
और,
बंद कर दो सारे इनोवेशन।
वाह! बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
जवाब देंहटाएंOnline Book Publisher India
बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
बधाई