मन में उठने वाले भावों को लिपिबद्ध करने का एक लघु प्रयास

सोमवार, 18 दिसंबर 2017

रुको नहीं चलते रहो

आते हैं कांटे राह में,
आने दो,
चुभते हैं शूल पैरों में,
चुभने दो। 
सहकर भी कष्ट सारे तुम,
रुको नहीं, चलते रहो।

छिपता है सूरज,
छिपने दो
ढलता है दिन,
ढलने दो
ज्ञान का दीप जलाकर,
मन में तुम
रुको नहीं, चलते रहो।

थकता है मन,
थकने मत दो
टूटता है भरोसा,
टूटने मत दो
लेकर आशा की किरण,
मन में तुम
रुको नहीं, चलते रहो।

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