“ और इस तरह से किसी को लेटर देना बड़ी सामान्य सी बात है! इतनी सामान्य कि इसके बारे में की गई शिकायत को भी गंभीरता से लेने की आपको कोई जरूरत महसूस नहीं होती! “ - श्रेया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली।
“ ऐसी तो कोई बात नही है। “ - प्रिंसिपल शुक्ला बोले - “ अगर तुम्हें यह मामला इतना ही गंभीर लगता है तो फिर मुझे ही भला क्या आपत्ति है! “
प्रिंसिपल शुक्ला ने अपनी डेस्क पर रखी बेल को बजाया, जिसका सायरन सुनकर बाहर गेट पर बैठा चपरासी मदन तत्परता से भीतर दाखिल हुआ। मदन कोई 32 साल का दुबला पतला सा युवक था, जो आर्ट्स कॉलेज में चपरासी की प्राइवेट पोस्ट पर था।
“ बी ए फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट्स यश और महेश दोनों को भेजो यहाँ। फ़ौरन! “ - आदेश देते हुए प्रिंसिपल नरेश शुक्ला बोले।
“ जी सर! “ - बोलने के साथ ही मदन रूम से बाहर निकल गया।
मामले को अब तक महज एक मजाक समझ रहे प्रिंसिपल के चेहरे पर अब गंभीर भाव आ चुके थे। यह देखकर श्रेया ने राहत भरी साँस ली।
बाहर यश कब से श्रेया के जवाब के इंतजार में खड़ा था। एक एक लम्हा उसके लिए एक एक युग की तरह बीत रहा था।
“ श्रेया अभी तक आई क्यों नहीं! कब आयेगी वो ? पता नहीं वो मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट भी करेगी या नहीं! “ - बड़ी ही बेचेनी से इंतजार करते हुए वह उसी जगह बुत बना खड़ा था, जहाँ कि उसने श्रेया को लेटर दिया था।
श्रेया तो नहीं आई। लेकिन, चपरासी मदन जरूर उसे अपनी ओर आता दिखा।
“ प्रिंसिपल साहब ने बुलाया है। “ - पास आकर मदन बोला।
“ मुझे! “ - चकित स्वर में यश ने कहा।
“ और कोई दिख रहा है यहाँ ? “ - बोलते हुए मदन आगे बढ़ गया।
उसे अभी महेश को भी यही खबर जो देनी थी।
हैरत में पड़ा यश धीमे धीमे कदमों से चलते हुए प्रिंसिपल के रूम की तरफ बढ़ा , जो कि वहाँ से ज्यादा दूर नहीं था। जल्दी ही वह प्रिंसिपल रूम में प्रिंसिपल शुक्ला के सामने खड़ा था।
श्रेया को भी वहीं एक चेयर पर विराजमान देखकर पूरा मामला समझने में उसे एक पल भी नहीं लगा और जैसे ही उसे ये समझ में आया कि उसको यहाँ पर क्यों बुलाया गया होगा, उसके सिर पर से दीवानगी का भूत एकदम से उतर गया। अब वह यथार्थ के उस धरातल पर आ चुका था, जहाँ पर कि उसे बहुत पहले आ जाना चाहिए था।
अभी वह प्रिंसिपल के सामने खड़ा उनके कुछ बोलने का इंतजार कर ही रहा था कि महेश रूम में दाखिल हुआ और वह भी यश के बगल में खड़ा हो गया।
प्रिंसिपल ने एक तेज नजर दोनों के ही चेहरों पर डाली।
श्रेया पूर्ववत बैठी रही। पीछे मुड़कर भी नहीं देखा उसने।
“ तो ये सब करने आते हो तुम यहाँ! “ - तेज और गंभीर स्वर में प्रिंसिपल शुक्ला बोले।
यश और महेश कुछ नहीं बोले। दोनों सिर झुकाए खड़े थे।
उनको चुप देखकर प्रिंसिपल को ग़ुस्सा आ गया।
“ मैं पूछता हूँ, यह कॉलेज है या शहर का कोई नुक्कड़! अगर ऐसी ही रोमियोगिरी चढ़ी हुई थी तो.. “ - आवेशित स्वर में बोलते जा रहे प्रिंसिपल को अचानक उन दोनों के मुँह से ‘ सॉरी सर! ‘ शब्द सुनने को मिला।
“ तुम लोगों को क्या लगता है, सॉरी बोलने से सब ठीक हो जाता है ? “ - गुस्से में प्रिंसिपल ने कहा।
“ मैं अपनी गलती के लिए शर्मिंदा हूँ सर! “ - सिर झुकाए हुए ही यश बोला।
“ मुझे भी अफसोस है सर! “ - महेश बोला।
प्रिंसिपल ने श्रेया की तरफ देखा।
“ अगर आप मुझसे ये उम्मीद कर रहे हैं कि मैं इन्हें माफ कर दूँगी, तो आप बिल्कुल गलत है सर! “ - श्रेया बेरुखी से बोली - “ क्योंकि अगर आज इनकी इस गलती को मैंने नजरंदाज कर दिया तो कल ये किसी और के साथ फिर यही हरकत करेंगे। मैं आपसे रिक्वेस्ट करती हूँ कि इनके खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए। “
प्रिंसिपल शुक्ला को बिल्कुल भी नहीं लग रहा था कि बात उतनी बड़ी है, जितना कि श्रेया उसे तुल दे रही थी। लेकिन, श्रेया को शांत करने के लिए और वह इस बात को लेकर ज्यादा हल्ला न मचाये, इसलिए प्रिंसिपल ने यश और महेश के खिलाफ कार्यवाही करने का निश्चय किया।
“ तुम लोगों ने जो हरकत की है, उससे इस कॉलेज की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। इसीलिए तुम दोनों को मैं एक सप्ताह के लिए रेस्टिकेट करता हूँ। एक सप्ताह तक तुम इस कॉलेज में तो क्या, इसके आस पास भी नजर नहीं आओगे। “ - आदेशात्मक स्वर में प्रिंसिपल शुक्ला बोले।
“ लेकिन, सर! “
“ तुम लोग जा सकते हो! “ - सख्ती से प्रिंसिपल बोले।
अब उनके पास और कोई रास्ता नहीं था।
धीमे कदमों से चलते हुए वे दोनों प्रिंसिपल रूम से बाहर चले गए।
“ थैंक्स सर! “ - विजेता की सी मुस्कान चेहरे पर बिखेरते हुए श्रेया बोली - “ मुझे खुशी है कि आपने सही निर्णय लिया। “
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“ उतर गया प्यार का भूत ? पड़ गई कलेजे को ठंडक ? “ - कॉलेज ग्राउंड में पवन बोल रहा था - “ समझाया था, बहुत समझाया था। मगर नहीं, ‘ पिछले एक सप्ताह से लव लेटर लिए घूम रहा हूँ, आज या तो वो ये लेटर लेगी या फिर चाकू मेरे सीने में उतारेगी ‘ - यही बोला था ना तूने! “
“ मानता हूँ कि मैं कुछ ज्यादा ही सीरियस हो गया था उसको लेकर और थोड़ा जुनूनी भी हो गया था। “ - यश बोला - “ लेकिन मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि इतनी छोटी सी बात को लेकर वो प्रिंसिपल के पास जा पहुँचेगी! ऐसा भला कौन करता है! “
“ यहीं तो तू गलती कर गया। ये जो श्रेया है ना, बड़ी पहुंची हुई चीज है। इसे साधारण लड़कियों की तरह समझकर तूने गलती कर दी। “ - समझाने के से अंदाज में बोल रहा था पवन - “ तू खुद सोच। जिस लड़की के पीछे कॉलेज के ज्यादातर लड़के पड़े हो, उसे आसानी से इंप्रेस किया जा सकता है क्या! “
“ तुम कहना क्या चाहते हो ? “
“ अब ये मत बोलना कि तुमको नहीं पता कि कॉलेज के अधिकतर लड़के श्रेया के पीछे पड़े हुए है। “
“ क्या ! “ - चकित स्वर में यश बोला - “ ये तुम क्या कह रहे हो! “
“ मतलब, तुमको सच में नहीं पता! “
“ नहीं पता मुझे और मुझे पता करना भी नहीं। कॉलेज भर के लड़के श्रेया के पीछे पड़े है, इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं बस इतना जानता हूँ कि श्रेया से सबसे ज्यादा अगर कोई प्यार कर सकता है, तो वो सिर्फ मैं हूँ। “
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