बसन्त का आगमन हुआ है ,
किसी ने इस दिल को छुआ है।
मन्द - मन्द शीतल - सी जो ये पवन है ,
लगता है तेरे ही स्पर्श की छुअन है।
खिल उठे बगिया में ज्यों ही फूल ,
ये दिल गया है सब कुछ भूल।
हो सुबह की कोयल का गुनगुनाना ,
या हो किसी चिड़िया का कोई गाना।
हर स्वर , हर शब्द के साथ जुड़ा है ,
बस यही तराना।
यह तुम ही हो , यह तुम ही हो।
शीतल चांदनी रात हो ,
या तुमसे जुड़ी कोई बात हो।
वृक्षों पर पत्ते नये आये ,
या पूरी धरती पर हरियाली छाए।
हर लम्हा याद तेरी ही आती है ,
मेरी रुह मुझे अहसास बस यही कराती है।
यह तुम ही हो , यह तुम ही हो।